Mahashivaratri Puja Date 16th March 1997 : Place Delhi : Type Puja Hindi & English Speech Language CONTENTS | Transcript | 02 - 06 Hindi 07 - 09 English Marathi || Translation 10 - 12 English 13 - 15 Hindi 16 - 20 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari (First, I will speak in Hindi language and then in English. We are such a cosmopolitan people that I don't know what language to take to. [Shri Mataji speaks in Hindi]) आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने हुए हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हुए प्रकाशित होता है हमारी नसों में। चैतन्य के लिए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे कहा है 'मेदेस्थित', प्रथम 'इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का च्म पहन कर घूमते ह मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी चले जाएं। उनको किसी चीज़ में घटित हो जाने से जो प्रकाश हमारे अन्दर आत्मा कभी ये ख्याल नहीं आता कि लोग क्या कहेंगे, से प्रगटित होता है वो चैतन्य स्वरूप बन कर हमारे दसरों का क्या विचार होगा? हम अगर ऐसे कपड़े हाथों और तालू से प्रवाहित होता है। ये तो आप पहनकर और नन्दी पर बैठकर इधर-उधर भटकें लोग जानते हैं; पर आगे की बात समझने की यह तो लोग हमें क्या कहेंगे ? क्योंकि वो अपने ही तो है कि जब यह प्रकाश हमारे अन्दर आता है अन्दर समाये हुए हैं। अपने ही खुशियों में बैठे हुए धीरे-धीरे हम देखते हैं कि हमारी जिन्दगी बदलने हैं। उनको कोई भी संसार से ये मतलब नहीं है कि लगती है, हमारे अन्दर का क्रोध और हमारे जो दुनिया हमें क्या कहेगी, लोक-लाज क्या होती है। षटरिपु हैं वो खत्म होने लगते हैं धीरे-धीरे सब ये तो इनके विवाह में भी आपने वर्णन होगा सुना चीजें गिरती जाती हैं और मन में श्रद्धा प्रस्थापित कि जब ये विवाह करने आए तो श्री विष्णु ने जब होती है। श्रद्धा में त्यागबुद्धि जागृत होती है, किसी देखा तो उन्होंने सोचा कि ये क्या दूल्हा मेरी बहन Original Transcript : Hindi के लिए आया है, बेकार सा! इससे कैसे मेरी बहन है। हिन्दुस्तानी अब भी जहाँ जाते हैं उनको बाथरूम शादी करेगी ? लेकिन पार्वती जी जानती थीं कि चाहिए साथ जुड़ा हुआ। पता नहीं और दुनिया भर अभी तक इससे उठ नहीं पाए हैं । उनके योग्य यही पति है जो एक मस्त-मौला की चीजें 1. आदमी है। किसी चीज़ की उनको कद्र नहीं है। स्वभावतः मुझे आश्चर्य होता है कि अपने गरीब देश सब चीज़ों से जब आदमी ऊपर उठ जाता है तो में भी लोगों में अभी काफी कामनाएं बची हैं। बड़े आश्चर्य की बात है! हमें लोगों ने कहा कि माँ एक उसके लिए सब चीज़ एक किन्चित पदार्थ हो जाती आश्रम के लिए एक बड़ी सी जगह ले लें। हमारे हैं। उसका ध्यान इस ओर नहीं जाता। ये शिवजी का जो अवतार हम लोग देखते हिन्दुस्तानी कभी आश्रम में रहते नहीं। अब ये हैं हमें बहुत प्यारा लगता है, मोहक लगता है और आश्रम जब हम लोगों ने बनाया, इतनी मेहनत से, सब लोग सोचते हैं कि शिवजी का सारा ही काम खर्च करके तो इसमें रहने के लिए कोई तैयार कुछ तो भी विशेष है। लेकिन जब सहजयोगियों में नहीं। हमने कहा बाबा हम तुमको तनख्वाह देते हैं. शिवजी का प्रकाश आ जाता है तो उनका भी तुम रहो। पर तैयार नहीं। मेरा जो जन्मस्थान है. जीवन बदलने लगता है। मैंने देखा है कि जैसे छिन्दवाड़े में, उस घर के लिए इतना रुपया-पैसा पहले सहजयोग में आए, औरतें भी, आदमी भी, सब खर्चा किया और मैंने कहा जो रिटायर हो गए हैं वहाँ रहें। बड़ी अच्छी आबो-हवा है, पहाड़ी स्थान सजना-धजना शुरु कर देते थे। सारा ध्यान इसी में रहता था कि आज क्या पहनें, कल क्या पहनें, है कोई रहने को तैयार नहीं। सब अपने आराम को सोचते हैं इन लोगों में यह बात नहीं है वे और आजकल तो इसका प्रादुर्भाव बहुत हो गया है क्योंकि सब जगह बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधन गृह निकल आए हैं, ये है, वो है, तो औरतें इसमें बहुत लोग आश्रमों में बड़े सुख से रहते हैं। मेरा घर, मेरी जगह, मेरी बीवी, खाना बनना चाहिए इस तरह से फँसी हैं। पर जब आपके अन्दर से निखार, आपके ये यही खाना खाएंगे। हम लोग इतने स्वाद में सौन्दर्य का, इस प्रकाश से आता है तब इन सब उलझे हुए हैं। इन लोगों में ये स्थिति नहीं है । हिन्दुस्तानी खाना भी शौक से खाते हैं। लेकिन मुझे चीज़ों का कोई महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह आराम, आराम भी एक तरह से आत्मा का ही मालूम है कि जब हिन्दुस्तानी कबेला आते हैं तो अपनी रोटियाँ, परांठे-वराठे, अचार-वचार बाँध के आराम मनुष्य खोजता है। अपने आराम से दूर लाते हैं क्योंकि उनके जीभ से नहीं उतरेगा । सभी रहता है। इसमें जो परदेशी लोग हैं, इनको देखिए, ये बड़े-बड़े घरों में रहते हैं, इनके पास मोटरे हैं तो जीभ में ही फॅसा हुआ है सो ध्यान करने से सबकुछ, रईस हैं। पर यहाँ आते हैं तो हर जगह जब तक ये चीजें छूटेंगी नहीं तो आप धर्म से परे नहीं जा सकते। एक छोटी सी बात समझने की है समा जाते हैं। पर हिन्दुस्तानियों का ये हाल नहीं 3 Original Transcript : Hindi कि त्याग में भी हम लोग कम पड़ जाते हैं। इस नहीं सकता वह सहजयोगी नहीं है। वो अभी बार इन्होंने कहा कि माँ आप इतनी बड़ी जमीन ले भी सोचता है कि मैं कोई विशेष हूँ, मेरा अलग रहे हैं, इतना खर्चा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सब इंतजाम होना चाहिए। वो सहजयोगी नहीं हो थोड़ा सा ज्यादा पैसा कर दो। न जाने कितनी सकता। वो नाम मात्र को सहजयोगी हैं। जो शंकर चिट्ठियाँ मेरे पास आईं कि आप पूजा का पैसा जी का भक्त है उसको शंकर जी जैसा होना है। कहीं भी सुला दो, कहीं भी बैठा दो, कुछ भी खाने कम कर दीजिए, पूजा का पैसा कम कर दीजिए । अरे भई एक बार दिल्ली में पूजा हो रही है उसमें को दो, उसको किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं भी चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ । पान खाकर लोग फेंक है। समय की पाबन्दी नहीं, किसी चीज की माँग देंगे लेकिन पूजा में जरूरी है पैसा देना! आपसे नहीं; ऐसा ही आदमी, हम कह सकते हैं, सहजयोगी पहले हमने कोई पैसा नहीं है । लिया। सारी चीजें शिवजी का आपके अन्दर प्रादुर्भाव हो गया। अपने ही दम पर सब करी। लेकिन इतना सा कहते ही आज आधा मण्डप खाली है। क्यों ? लोग तो इसको प्राप्त करने से पहले ही न जाने क्या-क्या कर्म करते हैं। और किसी पद्धति में आप क्योंकि पूजा का पैसा नहीं देना। फोन करते हैं कि हमारी पूजा माफ कर दीजिए। अरे भई आप कोई जाइए वो आपके सारे पैसे नोच लेंगे, आपके सारे कम नौकरी हो ऐसा नहीं है । हमारे पति देंगे मैं बाल नोच लेंगे पता नहीं क्या-क्या करेंगे। सहजयोग में ऐसा नहीं है लेकिन ये वृत्ति, जो अब भी हमारे नहीं दूंगी। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। अभी अगर अन्दर बनी हुई है, इसको छोड़ना चाहिए । यह कोई औघड़ गुरु होते तो आप लोगों के सबके बाल अ मुंडा कर और आपको गेरुआ वस्त्र पहनाकर सर प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्या-क्या चीज़ छोड़ सकते हैं जब तक ये मस्ती आपके अन्दर नहीं के बल खड़ा कर देते। लेकिन मैं यह नहीं चाहती, क्योंकि सहज की बात है। सब चीज़ सहज में आएगी तब तक आपको शिवजी का भक्त नहीं कह आना चाहिए। हमने बहुत लोगों को त्याग करते सकते। माता जी के तो हर तरह के भक्त हैं। अपने जीवन में देखा है। और आजकल लोगों में उसकी कोई विशेषता तो है नहीं। सब तरह के मैंने वो देखा ही नहीं। हमारी माँ का मुझे मालूम है भक्त हैं, चाहे जो भी करें, चलो माँ ही है, माँ माफ कर देती हैं। पर माफ कर देने से आप उस पद को कि छःसाडियों से सातवीं साड़ी उनके पास हो जाए तो दे डालती थीं वहाँ भी लोग आते हैं प्राप्त नहीं कर सकते। माफ करने की बात सबसे 1 बड़ी यह है कि शिवजी से हर समय माफी माँगनी कबेला में तो आश्चर्य होता है कि उन्हें अलग से कमरा चाहिए, घर चाहिए, अलग से रहेंगे। सबके चाहिए, हर समय क्षमा माँगनी चाहिए, क्योंकि साथ नहीं रहेगें। जो सब के साथ मिलकर रह पग-पग हम ऐसे काम करते हैं जो हमें नहीं करना 4 Original Transcript : Hindi चाहिए। उनसे क्षमा माँगनी चाहिए कि, हे शम्भो इससे तो आपका सोना हो गया और सोने पर तो हमें क्षमा कर दें हम ये गलती करते हैं, हम वो कोई कलंक लग ही नहीं सकता, उसपे कोई चीज गलती करते हैं, हमारे अन्दर ये जरूरतें हैं, हमारे चढ़ ही नहीं सकती। वो अब आप हो गए हैं, उस अन्दर वो जरूरते हैं. हमको ये चाहिए, हमको वो स्थिति को प्राप्त करें। अब भी क्यों ये गुलामी चाहिए । जब तक चाहिए. अपने अन्दर हैं, तब तक दुनिया भर की चीज़ों की ? यही कुण्डलिनी की आप परमात्मा से क्षमा माँगे। मेरा घर मेरी बीवी, विशेषता है कि यह आपको पूरी तरह से सफाई में इस तरह एक अधिकार की भावना, जो हमारे डाल देती है। सेवा, हाँ भई सेवा भी करनी चाहिए. पर मुझे तो कोई सेवा खास आपकी चाहिए नहीं। अन्दरं है, इसको जब हम छोड़ नहीं सकते तो हम शिवजी के भक्त नहीं हो सकते। इस मामले में मैं खुद ही मस्त-मौला हूँ मुझे आप क्या सेवा देंगे? आश्चर्य की बात है कि परदेश के लोगों ने तो सिर्फ ये है कि आप अपने अन्दर ये मस्त-मौलापन इतना पा लिया, जिन्होंने कभी सुना भी न था ले आइए। एक आनन्द में विभोर रहने पर ये शिवजी का नाम और हम लोग अभी भी उसी में सोचना चाहिए कि यह सब चीजें कुछ तो आनन्द हैं, और उसी को इतना मानते हैं। चिपके ही के लिए हैं और वो आनन्द हमको अगर मिलता हुए शिव होने का मतलब यह है कि सर्वथा ही है बगैर कुछ किए तो ये सब करने की क्या दुनिया भर की जो हमारे अन्दर लोलुपता है. जो जरूरत है ? बहुत कुछ सोचने पर मैं इस नतीजे पर उसको छोड़ देना है। पर मनुष्य सहजयोग में आने पहुँची हूँ कि सहज जो है वो है तो बहुत सरल और इसलिए बहुत कठिन है। अगर कोई डण्डा हमारे अन्दर नफरत है, जो हमारे अन्दर दुष्टता है पर भी अपने को देख नहीं पाता। मैंने सुना एक सास हैं जो अपनी को सता रही हैं। मैंने कहा लेकर खड़ा हो और कहे कि चलो सब बाल बहू तुम क्यों सता रही हो तो वो कहने लगी मैंने तो मुंडाओ, गेरुए वस्त्र पहनो, 14 दिन तक भूख सताया ही नहीं। सिनेमा में जाएंगे, देखेंगे कोई हड़ताल, तो हो गया। उसमें ठीक हो जाते हैं। पर सास बहू को सता रही है तो रोएंगे, वही और घर जो सहज है उसको अपने हृदय से, अपने मन से, में आकर बहू को सताएंगे या बहू सास को अपनी बुद्धि से स्वीकार्य करके और उसमें अपनी ही सताएगी । लेकिन कहेंगे कि मैंने कभी किसी को ताड़ना करना, अपने को ही ठीक करना, मैं ऐसे सताया ही नहीं। इस तरह के झूठ को अपने क्यों करता हूँ? ऐसा मुझे करना चाहिए क्या ? आवरण में रखकर सहजयोग में आप उठ नहीं इसमें बहुत कुछ छूट जाएगा और इससे एक तरह सकते। क्योंकि ये आप की जिन्दगी बदल देता है, से आप अपने को पाइएगा कि आप समर्थ हैं। 5 Original Transcript : Hindi आपको कोई चीज़ की गरज नहीं, आपको कोई नाथ लोग थे, वे भ्रमण करते थे, दुनिया भर में जाते चीज़ की इच्छा नहीं, बस बैठे हैं आराम से। और थे और उन्होंने बहुत कुछ लोगों को शिक्षा दी | मैं आश्चर्य की बात है कि जब चैतन्य यह जानता है तो हैरान हुई कि ये लोग कहाँ-कहाँ पहुँचे थे। 1 कि आपको कोई चीज़ की गरज नहीं तो आपके कोलम्बिया में गई थी तो वहाँ पता हुआ कि सामने थाली परोस कर लाता है। हो सकता है बोलीविया में ये लोग आए थे अब कोलम्बिया में प्रलोभन के लिए हो। फिर देखिएगा आपको क्या अगर आप जाएं तो हवाई जहाज में चक्कर आने है। कोई आपकी जरूरत ऐसी है ही नहीं जो लगते हैं इतना ऊंचा है। और उस वक्त तो स पूरी नहीं कर सकता। पर इसमें थोड़ी सी लगन पैदल ही लोग जाते होंगे ! तो ये गए कैसे होंगे ये होनी चाहिए। ही समझ में नहीं आता ? रूस में, रूस के और भी आज शिवजी का हम लोगों ने इतना आहान देशों में इनका भ्रमण हुआ, और कैसे करते थे, कहाँ किया और उनको तो ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। रहते थे, क्या पहनते थे, कुछ पता नहीं। क्योंकि वो उनमें हममें यही फर्क है कि हमें सब तरह के लोग दशा आ जाती है फिर आप एक चमत्कार पूर्ण अच्छे लगते हैं उनको नहीं। उनको ऐसे ही लोग इन्सान हो जाते हैं। जैसा हम जानते हैं कि शिरडी अच्छे लगते हैं जिन्होंने ये सब छोड़ दिया ये सब के साईनाथ, कहीं भी उद्भव होता है उनका, वे कहीं भी आते है। कहीं भी किसी की मदद कर देते व्याधियाँ हैं हमारे अन्दर। एक-एक चीज़ में कि भई कपड़े ऐसे पहने, नहीं पहने तो क्या हो जाएगा ? हैं। लोग कहते हैं माँ हमने तो उनको देखा. हाँ लेकिन हमारे यहाँ सन्यास बाह्य का नहीं माना देख सकते हैं, क्यों नहीं ? ऐसे लोग अमर हो जाते जाता, अन्दर से; अन्दर से आप सन्यस्थ हो जाएंगे हैं क्योंकि उनकी मारने वाली जो वृत्तियाँ हैं खत्म और सन्यस्थ होने पर कोई भी चीज़ की कामना हो गईं फिर वो अमर हो जाते हैं और इसी नहीं रह जाती। जहाँ है वहीं मस्त बैठे हैं। पहले अमरत्व को प्राप्त करना ही शिवजी की पूजा है । 1 ORIGINAL TRANSCRIPT ENGLISH TALK I am talking to them about Shiva's worship – what should happen to you. But today, I am going to tell about the internal happening within us when you get your realization. There are eleven rudras you placed here – eleven rudras. They are particles, we can say, anshas as they call it, of Shiva's powers. And all of them try to take out, or to remove all the false ideas we have about life. When the Kundalini rises, they all get enlightened - eleven of them. And, say for example, Buddha had a part of that; Mahavira had a part of that. Now, all of them, what they do is to control us from falling into the prey of various things. Like, we have an ego. So, Buddha will look after the ego part. He will see that you get shocked by your ego. You will be quite amazed how you could be so egoistical, and so insulting, and so humiliating. But when this rudra is not awakened, when there is no light in this rudra, then what happens? You start justifying yourself. You think whatever you do is correct, whatever you've done, whatever you've said, whatever you have achieved, you think is your right. You've done nothing wrong. For that, this Buddha's rudra has to be awakened. On the contrary, if you go on pampering your ego, if you go on becoming egoistical, you become absolutely a right-sided personality. Once you are a right-sided personality, you know what all the symptoms there are of such a person. Now, for that if you just watch and introspect and see for yourself what ego has done to you, what wrong ideas you had about yourself. So that's why Mohammed Sahib has said, “Beat yourself with shoes." He didn't know what else to tell. Because this ego business can really burst you, your head completely, and you may land up into so many difficulties. Ultimately, I have seen people developing this yuppie's disease where the conscious mind becomes absolutely useless, cannot move. Consciously people cannot move. Unconsciously they will, but not consciously. And this disease is so horrible. A person becomes like a reptile. You have to them on your body. They can't walk on their own. They can't sit on their own. In a very young age 99 carry this can happen. This is happening in America. Also, I have seen two, three cases here, in India, also such a thing is happening. So if you do not try to see your ego and control it, and feel repentant about it. In Sahaja Yoga, there is nothing like repentance, we don't believe in repentance. Because we believe that you all have got your realization. You are beyond any mistakes. It's not true. We have to repent. There's a, in English, there is a word – sorry. Sorry, for everything they will say sorry. Even telephone if you pick up, they'll say, “sorry." I say, "Sorry, for what?" But this sorry itself is very empty. It has no meaning. It has no depth. When you say "sorry," you have to see why you are saying "sorry," and what is to be corrected. This is a very big problem of today's generation where people have developed such tremendous ego - because all our economic growth, all our industrial developments, all our big, big organizations, all of them have given us a way that we should all develop our ego. If we don't develop our ego, we will be lost; we are nowhere. And that's how we start pampering it, and then this right-sided problem starts. Then as a reaction, it goes to the left side. 99 Actually, in the head it is on the right side. Here is the right side ego comes up, so the left rudra is that of Mahavira. So people do things, which are sinful, which are wrong, which are against Shri Ganesha. Then also there are controlling powers of Mahavira, who controls. He says, "You will go to hell. This will happen." He describes all the hell, all kinds of hell, that you'll go to hell and you'll be burnt alive - I don't know, all kinds of things He describes to frighten you. But that doesn't help. So people start getting more onto the left side and, I should say, through this rudra, when this rudra gets helpless, then a tremendous depression comes in. One feels very depressed. "Oh God. What a depression I have. I am so sick. I am this thing." And then you try to frighten others with your 99 Original Transcript : English depressions. You show sort ofa, what you call, a emotional blackmail you do. All kinds of things you will do, and beat your head and do all kinds of things. Could be through ego, could be through this left side problem of the left rudra. These two rudras are very important because they are directly connected with our left and right sympathetic nervous system. So, it's very important to see that you don't fall a prey to these rudras. These rudras are to be satisfied. So to be normal, at least look after these two rudras, which are: one is one who controls the ego, and another is self-pity. "I just can't do it, I'm this, that" and all kinds of depression. All this works out into, physically also, into very serious problems like cancer. If the rudras are caught up, you develop cancer. But all this portion gets swollen up. It's called as the medha. This all portion gets swollen up, and you can see a cancer patient having a swelling all over. At least would be here, or may be there. Because such a swing in the nature of a person that you can't say from which rudra they have developed these psychosomatic troubles. Psychosomatic troubles, all of them, come because the rudras have become ineffective. It can be due to the depressive nature or oppressive nature. It could be due to many other factors also. But all these factors are nothing but part and parcel of Shri Shiva's, or Sadashiva's powers. He is the one who is full of karuna - full of compassion. He is the ocean of compassion. If you ask Him forgiveness, He will forgive. Whatever you do, instead of feeling guilty if you ask forgiveness, then He forgives. But if you think you, whatever you've done is good, you've never tortured anybody, you have never made anybody suffer, then it knows. Shiva knows everything, isn't it? And, because it knows, it starts giving up. So there's a big combination of your will power to be there, and the combination of the blessings of Shiva. When the Shiva blesses you, your will power also heightens. But you must have full will power to know that you have to be of a higher level of personality. He was not at all a mundane type. I mean He was... supposing, ask Shiva to go to some party and all that, how will He look there? People will laugh at Him. When I met some hippies, I said, "Why are you having this kind of hair?" So they said, "We want to…." They are all primitive. So he said, "I want to be primitive." I said, "But the brain is modern. What's the use of having primitive hair?" 99 So, deception; Deceiving yourself is not going to help. Best thing is to face yourself and understand what wrong you have been doing. If it works out, I tell you, so many Sahaja Yogis you are sitting here. If you correct yourself and become that, I am sure all the problems - political, economic, and all stupid problems we have - will be finished. But today it's such a mixture, due to Kali Yuga, that even the worst people are carrying on. Now, we have a responsibility to save this world. We have a responsibility to create a great, honorable life, which is not superficial, which is not just to show off. But inside it should develop so that this light of your spirit spreads and enlightens this world. It's very important to understand all these troubles and these, I should say, diseases, psychosomatic diseases, and all other problems which are, in a collective way we can call, of the Kali Yuga like political, economic, all these problems - only are created by human beings. They are not created by the Divine Force. But Divine Force tries to neutralize them if there are many Sahaja Yogis who are practicing Sahaja Yoga in the real sense of the word. If that could be done, if that could be achieved, then I think we can do a lot, a lot for the betterment of humanity, and that's why we have got realization. It's not only for yourself, it's not only for your family, it's not only for your city or country, but for the whole world Sahaja Yoga is going to work out. Now, if you have to do competition, you must only do competition in your ascent and in nothing else. But people are so superficial that they think by showing off or by becoming something – a big Johnny – they will achieve something of a very great level: is not so. It has to be a very humble attitude towards yourself also, so that you understand that whatever you are doing is for the betterment of global problems. Absolutely we can solve because you are the channels of the Divine. If I could do it 8. Original Transcript : English alone, I would have done it. But I can't, so that's why I had to gather you all and to tell you that you become all the channels. But in the meanwhile, you enjoy. You enjoy life. Every second becomes a joy, which is also the gift of Shiva. Shiva is the one who creates this great admiration and great appreciation of every moment, everything that is there. And that is the state we have to achieve, by not condemning yourself, or not by pampering your ego, but by seeing what you are. That's the main thing one has to see - what problem you have, and what is troubling you is yourself only. If you could just come to that point of understanding, I am sure, I am very, very sure that you will be such an asset to help to make this world look at itself and change. Because superficially you cannot change such deep rooted problems. And, you are being so blessed by Kundalini that you can really become a great torch, I should say, torch on the path oftruth, love and joy. May God bless you. ENGLISH TRANSLATION (Hindi Talk) Scanned from English Divine Cool Breeze Shiva is the reflection of Sadashiva. Shiva's form is in our heart all the time in the form of our spirit. It resides there. I would not say it is enlightened. When the Kundalini is awakened, then this Shiva gets awakened and this gets awakened in our nerves. Chaitanya is said to be "Medha Sthiti', First our heart and our brain get connected. Otherwise, ordinarily a person's brain goes one way and the mind runs the other way. When this union takes place, the light that is there within us, which comes from our spirit, flows in the form of Chaitanya from our heads and our fontanel bone area.What we have to understand further is that when this light comes within us, then gradually we see that our life changes. Our anger and other vices, start vanishing. Gradually all these things drop off and devotion is established within us. In devotion, a sense of detachment awakens. Nothing is important any more. The form of Shiva is highly evolved. He is not bothered about anything. His hair is dishevelled, he is not bothered about the type of clothes he is wearing, what he should do. All this work he has given to Vishnu. He is himself detached from all this, His vehicle is Nandi who cannot in any way be tamed. Wherever it takes, Shiva goes there. Shiva is never bothered about what people might say, because he is contained within Himself. When he came for his wedding Shri Vishnu saw him and thought, "How could he be bridegroom for my sister?" But Parvati knew that it was only he who was worthy of her. He was a happy-go-lucky type of person. He was not bothered about anything. When one rises above everything, then for Him everything is alike. His attention never goes there. This form of Shiva that we see, we find very endearing. When the Shiva tattwa gets awakened in Sahaja Yogis, their life also starts changing. When people come to Sahaja Yoga, both men and women, are very fond of dressing up. All the attention is on what they should wear. There are many beauty clinics and things and women are very caught all these things cease to be important and one looks only for the comfort of the spirit. One stays from bodily comforts. See these foreign Sahaja Yogis, they live in big houses, they have in all this. But when, by getting enlightened, you become beautiful from within, then up away cars and everything, but when they come here, they are contented within themselves. It's not so with Indians. Indians now also, wherever they travel, they need attached bathrooms and all sorts of things. Still, they are not able to rise above all this. I am surprised to find that in a poor country like India people still have so many desires left. These people said, 'Mother, take a big 10 English Translation (Hindi Talk) place for an ashram.' Our Indians never live in an ashram. When we made this ashram, with such hard work and a lot of expenditure, nobody was prepared to live in it. We said we will pay you a salary to live in it, still they were not prepared. For My birthplace, Chhindwara, we spent so much money and I said that retired Sahaja Yogis should stay there, the climate is very nice, it's a hill station. But nobody is prepared to go. Everybody is bothered about their comfort. My house, my place, my wife, my food should be cooked in this manner. They will eat only special kind of food. We Indians are so conditioned up by our tastes; with the foreigners it is not so. By meditation until we overcome all this, we cannot ascend. In the matters of sacrifice, we lag behind. For the purchase of land, for NGO project, Sahaja Yogis were asked to pay a little more puja money. But there was a lot of hue and cry, complaints and al that. I have been doing everything without taking any money from you. How does it matter it you give a little more money for a noble cause? I have seen many sacrificing people in My lifetime, but, nowadays, this spirit couldn't be seen. I don't see it nowadays. I know about My mother, if she had even one saree more than six, she would give it away. When, people come to Cabella, I am surprised, they want separate rooms, they do not want to stay with everyone. One who cannot be collective, cannot be a Sahaja Yogi. He still thinks, 'I am special, I must have some special arrangements'. He is a Sahaja Yogi in name only. One who worships Shiva, he should be like Shiva. You make him sleep anywhere, give him anything to eat, one who is not bound by time, is not bound by anything, only such a person is Sahaja Yogi. And you have Shivji's Pradurbhava' (manifestation) in you. But to attain this, God knows, what Tapasya people undergo and anywhere you go they will snatch all your money and what not. It is not so in Sahaja Yoga But this "Vriti' (tendency) that we have in ourselves, we should what all we can give up. Until you do not get this masti' (ecstacy) within you, you cannot be give up, We should try and see called a worshipper of Shiva. Mataji has all types of worshippers, there is nothing special about that. Whatever they do, a Mother is a Mother, Mother will forgive them. But by being forgiven, you cannot reach that state In forgiveness the most important thing is that one should always ask for Shiva's forgiveness because we are at each step doing things we should not be doing. So we should ask for forgiveness from Shiva Shambhu. We make this mistake and that mistake, we have this need and that need-- till we have these needs within us, we should keep asking forgiveness from God. This feeling of possessiveness-my house, my wife-until we can overcome this, we cannot be Shiva Bhaktas In this regard, it is very surprising that while foreigners who have never heard of Shiva's name have benefitted so much, we are still caught in small things and consider that so important. To be Shiva means that the hatred and negativities that are there within us, we should give them up But even after coming to Sahaja Yoga, people are unable to see themselves. I have heard there is 11 English Translation (Hindi Talk) a mother-in-law who is ill-treating her daughter-in-law. When I asked her why she is doing sc she said, 'I have never ill-treated anyone.' Really? They will go to the cinema and see a mother in-law ill-treating her daughter-in-law and start crying, but they will come home and do th same thing. Or, the daughter-in-law will ill-treat the mother-in-law and will say that I hav never ill-treated anyone'. Without being truthful within, you cannot ascend in Sahaja Yoga. Sahaja Yoga changes your life, you have become pure like gold, and gold cannot be tarnished have become that, reached that state. Why is it that you are still slaves of thes Now you innumerable things in this world? This is the speciality of Kundalini, that it cleanses yot completely. Now, service. Yes, you should do service too, but I really do not require any service from you. I am self contained. What are you going to do for Me? The only thing is that you should also be self contained and enjoy yourself. In that state of joy, you should think that al these things are meant for enjoyment and that by doing Sahaja Yoga when you are already in tha state of joy, then why do you need to do all this? After much brooding, I have come to the conclusion that Sahaja is very simple and that's why i is very difficult. If somebody is there standing with a stick and saying, 'alright now shave of your heads, wear saffron clothes', hunger strike for 14 days, then it will be alright. But accepting Sahaja with heart, mind and brain, one should condemn one's misdeeds and improve why do I do like that? Should have I done that? By doing this, you will be able to give up man oneself bad things and find that you are 'Samartha' (Capable). You have no needs, no desires, you arn sitting comfortably. And it is surprising that when the Chaitanya knows that you require nothing then it will serve you a platter full of everything. May be that it is to tempt you. There is no neec of yours that it cannot fulfil. Today we did so much 'Avahan' (invocation) of Shivji and he actually likes this sort of people The difference between Him and Me is that I like all sort of people. He only likes those kind o people who have given up all this. We have these conditionings for everything-we should wea type of clothes. If we don't, so what? But in Sahaja, Sanyas is not from the outside, but fron within. From within, you become a Sanyasi and then no desire remains. Wherever you are, you are joyful. First there were 'Nath Panthis', they used to wander all over and they taught peopl this a lot of things. I am surprised, how much these people travelled! When I went to Colombia found out that these people had even reached Bolivia, When you go to Colombia in an aeroplane you feel giddy, it is at such a height, and at that time people used to go on foot. So I don' understand how these people might have reached there. In Russia also and other countries they travelled. How they lived, how they travelled all over, what they wore, no-one knows! Because you reach that state where you become a miraculous person, like 'Shirdi Sainath'. He anywhere, helps anyone. People say, 'Mother, we saw him'. I say, Yes, it is possible'. Such people become immortal because the killing tendecies in them get finished and that make them mortal appear They become immortal. And to achieve this immortality is the real puja of Shivji. 12 HINDI TRANSLATION (English Talk) मैं इन लोगों से (भारतीय) श्री शिव की पूजा की बात कर रही थी। आपके साथ क्या घटित होना चाहिए? आज मैं आपको बताऊंगी कि जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो हमारे अन्दर क्या घटित होता है। यहाँ ग्यारह रुद्रों का स्थान है, वे श्री शिव की शक्तियों के अंश हैं और हमारे अन्दर जीवन के प्रति जो मिथ्या विचार हैं उन्हें निकाल फेंकने के लिए वे सब प्रयत्नशील रहते हैं। जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो वे सब जागृत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बुद्ध और महावीर भी उन्हीं का एक हिस्सा हैं। वे सभी हमें बुराइयों में फँसने से रोकते हैं। मान लो हममें अहं है तो बुद्ध इसको नियंत्रित करेंगे और ये देखेंगे कि अपने अहं से आपको सदमा पहुँचे। इस सदमे के पश्चात् आप हैरान हो जाते हैं कि इतने अहंकारी, अपमानजनक और ओछे, आप किस प्रकार हो सकते हैं। परन्तु जब यह रुद्र जागृत नहीं होता, जब इसमें प्रकाश नहीं होता तब क्या होता है? तब आप अपने कार्यों को न्यायसंगत ठहराने लगते हैं। आप सोचते हैं कि जो भी कुछ आप करते हैं वह ठीक है। जो भी कुछ आपने किया, जो भी कुछ आपने कहा, जो भी आपने प्राप्त किया, आप सोचते हैं कि वह आपका अधिकार है तथा आपने कुछ गलत नहीं किया। इसके लिए रुद्र रूपी बुद्ध का जागृत होना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि आप अहंकारी बनते चले जाएं तो आप पूर्णत: आक्रामक व्यक्तित्व बन जाएंगे। आप जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की क्या निशानियाँ हैं। मात्र देखें और अन्तर्दर्शन करें और स्वयं के लिए देखें कि अहं ने आपको क्या हानि पहुँचाई है । स्वयं के विषय में आपके कितने गलत विचार थे। इसी कारण मोहम्मद साहब ने कहा था कि जूतों से अपने अहं की पिटाई करो । अहं को रोकने की कोई और विधि उनकी समझ में नहीं आई । यह अहं वास्तव में आपके मस्तिष्क का विस्फोट कर सकता है और आप भिन्न कठिनाइयों में फँस सकते हैं। परिणाम स्वरूप मैंने देखा है कि लोग युप्पीज़ रोग ग्रस्त हो जाते हैं जिसमें चेतन मस्तिष्क बिल्कुल बेकार हो जाता है, व्यक्ति हिल भी नहीं सकता, चेतन अवस्था में वह हिल-डुल नहीं सकता परन्तु अचेतन स्थिति में वह हिल-डूल सकता है। यह रोग इतना भयंकर है कि व्यक्ति रेंगने वाले जीव की तरह से हो जाता है। ऐसे लोगों को कन्धे पर लाद के ले जाना पड़ता है, स्वयं तो वे चल भी नहीं सकते, बैठ भी नहीं पाते। बहुत ही छोटी उम्र में ऐसा हो सकता है। अमेरिका में ऐसा हुआ है और भारत में भी मैंने ऐसे कुछ रोगी देखे हैं। अत: यदि आप अपने अहं का ध्यान नहीं रखते, इसे नियन्त्रित नहीं करते इस पर आपको पश्चाताप नहीं होता (यद्यपि सहजयोग में पश्चाताप जैसी कोई चीज़ नहीं है क्योंकि हमें विश्वास है कि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और आप गलतियों से परे हैं) तो आपको परेशानी हो सकती है। अपनी गलतियों पर हमें पश्चाताप होना चाहिए। अंग्रेजी में एक शब्द है (वततल) मुझे खेद है हर चीज़ के लिए खेद है, फोन उठाते हुए भी वे कहते हैं मुझे खेद है। हर चीज़ के लिए वे कहते हैं मुझे खेद है। काहे का खेद? परन्तु यह खेद भी अर्थहीन है इसमें कोई गहनता नहीं। मुझे खेद है कहते हुए आपको देखना चाहिए कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं और कौन सी त्रुटि का सुधार होना आवश्यक है। आज की पीढ़ी में बहुत बड़ी समस्या यह है कि उसमें भयानक अहं विकसित हो गया है क्योंकि हमारी सारी 13 Hindi Translation (English Talk) आर्थिक उन्नति ने, औद्योगिक विकास ने बड़ी- बड़ी संस्थाओं ने हमें एक मार्ग दिया है कि हम अपने अहं को विकसित करें। बताया गया है कि यदि हम अपने अहं को विकसित नहीं करते तो हम खो जाएंगे, कहीं के नहीं रहेंगे। इस प्रकार हम अहं को बढ़ावा देने लगते है तथा दाईं ओर की समस्याएं आरंभ हो जाती हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप में इसका प्रभाव बाईं ओर पर पड़ता है। वास्तव में बाईं ओर का स्थान हमारे सिर में दाईं तरफ है तो हमारा अहं बाईं आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर बाईं ओर के रुद्र हैं। अहंवश होकर लोग पापमय, अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरुद्ध हैं । श्री महावीर जी की शक्तियाँ नियंत्रण करती हैं, वे कहते हैं कि तुम नर्क में जाओगे, ऐसा | होगा। उन्होंने सभी प्रकार के नर्कों का वर्णन किया है तथा आपको डराने के लिए बताया है कि आप नर्क में जाओगे जहाँ आपको जिन्दा जलाया जाएगा, आदि-आदि। परन्तु इससे कोई लाभ नहीं होता और लोग बाईं ओर को, इस रुद्र की ओर, झुकने लगते हैं तथा ये रुद्र मजबूर हो जाता है और ऐसे व्यक्ति को भयंकर उदासीनता रोग हो जाता है। व्यक्ति भयंकर उदासीन हो जाता है। हे परमात्मा! मुझे यह कैसा रोग हो गया है? मैं इतना बीमार हूँ आदि, आदि। अपनी उदासीनता से आप अन्य लोगों को डराने लगते हैं, आप भावनात्मक भय-दोहन करने लगते हैं, अपना सिर पीटते हैं आदि, आदि। ऐसा अहं के कारण भी हो सकता है और बाईं ओर की स'स्याओं के कारण भी । ये दोनों रुद्र बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन दोनों का सम्बन्ध सीधे हमारी बायीं और दायीं अनुकम्पी प्रणाली से है। अत: यह आवश्यक है कि इनको ठीक करते हुए आप इन दोनों रुद्रों के शिकार न बन जाएं। इन रुद्रों का संतुष्ट होना आवश्यक है। अत: सामान्य होने के लिए इन दो रुद्रों का ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें से एक अहं का नियंत्रण करता है दूसरा आत्मग्लानि का। मैं ऐसा नहीं कर सकती। इस प्रकार के उदासीनता आदि रोगों का शरीर पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, इससे कैंसर तक हो सकता है। यदि ये रुद्र पकड़ जाएं तो व्यक्ति को कैंसर हो जाता है। आज्ञा में मेधा सूज जाती है। पूरा हिस्सा ही सूज जाता है। किसी कैंसर के रोगी को आप देखें तो उस पर सूजन दिखाई देगी, कम से कम मस्तक के बायीं या दायीं ओर। व्यक्ति के स्वभाव में इतना दोलन होता है कि कहा नहीं जा सकता कि कौन से रुद्र से आपने मनोदैहिक रोग ले लिए हैं। सभी प्रकार के मनोदैहिक रोग रुद्रों के प्रभावहीन हो जाने के कारण, उदासीन या निष्ठर स्वभाव के कारण भी होते हैं। यह बहुत से अन्य कारणों से भी हो सकते हैं। परन्तु यह सभी कारण श्री शिव या सदाशिव की शक्तियों के | अंग-प्रत्यंग ही होते हैं। श्री शिव करुणा से परिपूर्ण हैं, वे करुणा के सागर हैं। आप यदि उनसे क्षमा माँगें तो वे क्षमा कर देते हैं, चाहे जो भी अपराध आपने किया हो। परन्तु यदि आप सोचते हैं कि आपने जो भी किया अच्छा किया, आपने कभी किसी को परेशान नहीं किया, किसी को दुःख नहीं दिया तो ये सब जानते हैं। शिव सभी कुछ जानते हैं और अपनी जानकारी के कारण वे त्यागने लगते हैं, आपको आपके भाग्य पर छोड़ देते हैं। अत: आपकी अपनी इच्छा शक्ति तथा शिव के आशीर्वाद का बहुत बड़ा योगदान है। जब शिव आपको आशीर्वादित करते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति भी बहुत उच्च हो जाती है। परन्तु ये जानने के लिए कि आपको अत्यन्त उच्च स्तर का व्यक्ति होना है। आपमें पूर्ण इच्छा शक्ति होनी चाहिए वे बिल्कुल सांसारिक किस्म के नहीं है । मान लीजिए कि श्री शिव को किसी पार्टी आदि में जाने के लिए कहा जाए तो वे कैसे लगेंगे? वहाँ लोग उन पर हँसेंगे । मैं जब कुछ हिप्पियों से मिली और उनसे पूछा कि तुम इस प्रकार के बेतुके बाल क्यों रखे हुए हो? उन्होंने उत्तर दिया कि हम आदि मानव 14 Hindi Translation (English Talk) बनना चाहते हैं। मैंने कहा कि आपका मस्तिष्क तो आधुनिक है, आदि मानव की तरह बाल रखने का क्या लाभ है? तो धोखा, स्वयं को धोखा देने से कोई लाभ न होगा। सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि स्वयं का सामना करें और समझें कि आप क्या गलतियाँ करते रहे हैं? यदि ऐसा हो जाए, और जितने भी सहजयोगी यहाँ बैठे हैं, मैं आपको बता दें, यदि आप स्वयं को सुधार लें और शिव सम बन जाएँ तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी समस्याएं, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। परन्तु आज कलियुग के कारण ऐसा वातावरण बन गया है कि अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग चले जा रहे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि विश्व की रक्षा करें, एक अत्यन्त सम्माननीय जीवन की सृष्टि करें जो दिखावा मात्र (सतही) न हो। यह अन्दर से इस प्रकार विकसित हो कि आपकी आत्मा का प्रकाश फैले और पूरे विश्व को प्रकाशित करे। यह समझना अत्यन्त आवश्यक है। ये सब कष्ट, रोग, मनोदैहिक रोग तथा अन्य सभी समस्याएं जैसे, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य समस्याएं मानव की बनाई हुई हैं। सामूहिक रूप से ये कलियुग की देन है। परमेश्वरी शक्ति ने इन्हें नहीं बनाया। अत: यदि बहुत से सहजयोगी हों, जो सत्यनिष्ठापूर्वक सहजयोग कर रहे हों, तो यह परमेश्वरी शक्ति इन्हें निष्प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। यदि ऐसा हो जाए, यदि ये उपलब्धि हम पा सकें तो, मैं सोचती हूँ, हम बहुत | कुछ कर सकते हैं- मानव के हित के लिए बहुत कुछ। इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। ये केवल आपके लिए ही नहीं है, केवल आपके परिवार के लिए ही नहीं है, केवल आपके नगर या देश के लिए ही नहीं है परन्तु यह पूरे विश्व के लिए है। सहजयोग कार्यान्वित होगा। आपने यदि परस्पर मुकाबला करना है तो उत्थान में करें, और किसी चीज़ में नहीं। परन्तु लोग इतने उथले हैं कि वे सोचते हैं कि दिखावा करने से या अपने आपको बहुत बड़ी चीज़ मान बैठने से वे उत्थान का बहुत ऊँचा स्तर पर लेंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। स्वयं के प्रति भी अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण होना चाहिए ताकि आप समझ सकें कि आपके सभी कार्य ब्रह्माण्डीय समस्याओं के समाधान के लिए हैं। नि:सन्देह आप इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं क्योंकि आप ही परमात्मा के माध्यम हैं। यदि मैं अकेली ये सब कार्य कर सकती तो मैंने कर दिया होता, परन्तु मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ। इसीलिए मुझे आप सब लोगों को यह बताने के लिए इकट्ठा करना पड़ा कि आपको परमात्मा का माध्यम बनना होगा। परन्तु साथ ही साथ आप जीवन का आनन्द ले रहे हैं। आपका हर क्षण आनन्द बन जाता है। यह भी श्री शिव का ही वरदान है। शिव ही इस महान सराहना तथा हर क्षण की महान अनुभूति की सृष्टि करते हैं। यही स्थिति आपने प्राप्त करनी है, अपनी भत्त्सना द्वारा नहीं और न ही अपने अहं को बढ़ावा देकर, परन्तु ये देखते हुए कि आप क्या हैं। यही विशेष चीज़ है जिसे आपने देखना है, कि आपमें क्या बुराइयाँ है। आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट दे रहे हैं। इस बात को यदि आप समझ लें तो मुझे विश्वास है, पूर्ण विश्वास है कि आप इतनी बहुमूल्य चीज़ बन जाएंगे जो पूरे विश्व के लोगों को, स्वयं को देखने और परिवर्तित होने में सहायक होगी। समस्याओं की जड़ें इतनी गहन हैं कि उथले स्तर पर रहते हुए आप परिवर्तित नहीं हो सकते। माँ कुण्डलिनी आपको इस प्रकार आशीर्वादित कर रही हैं। मैं कहूँगी, कि आप सत्य, प्रेम और आनन्द के मार्ग पर, वास्तव में, एक महान मशाल (ज्योति) बन सकते हैं। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 15 MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari कसा काय?" पण पार्वतीला माहीत होते की तेच तिचा पति होण्यास लायक आहेत. ते सदा-सर्वकाळ खूष कसलीही पर्वा नाही. एकदा कोणी सर्व गोष्टींच्या पार गेला की त्याला सर्व गोष्टी सारख्याच वाटतात, त्यांच्याकडे त्याे चित्तव जात नाही. या स्वरूपामध्ये आपण शिवांना जेव्हा जाणतो तेव्हा ते लोभस वाटते. सहजयोग्यांमधे शिवतत्त्व जागृत झाल्यावर त्यांचे शिव हे सदाशिवांचे प्रतिबिंब आहेत. शिव आत्मस्वरूपांत आपल्या हृदयात सदैव प्रस्थापित आहेत; तिथे त्यांचा वास आहे. त्या स्थानी ते प्रकाशित आहेत असे मी म्हणणार नाही. कुण्डलिनीचे जेव्हा जागरण होते तेव्हा श्री शिव जागृत होतात आणि ते चैतन्य आपल्या नसांमधून वाहू लागते. चैतन्यालाच "मेधास्थिति" असे नाव आहे. सर्वप्रथम आपले हृदय व मेंदू जोडले जातात प्रवृत्तीचे आहेत. त्यांना किक्म सामान्यतः माणसाचा मेंदू आणि त्याचे मन विरुद्ध दिशेने कार्थ करत असतात. हा योग बटित झाल्यावर आपल्या जीवनही बदलते. सहजयोगात येणारें लोक, पुरुष व महिला, दोघेजण आधी कपड्यालत्यांच्या बाबतीत हौशी असतात. त्यांचे लक्ष सदैव पेहरावाकड़े, आज ब्यूटि- आल्याचा प्रकाश चैतन्यस्वरूपात आपल्या मस्तकामध्ये व टाळूमध्ये पसरु लागतो. त्यानंतर समजून घ्यायला हवे की हा प्रकाश आपल्याला मिळाल्यावर आपल्या जीवनात पा्लरकडे खूप स्त्रिया जातात. त्याशिवाय चालत नाही, पण परिवर्तन घडून आल्याचे आपण पाहतो. आपला राग आणि वाईट सवयी कमी व्हायला लागतात, हळुहळु हे दोष पूर्णपणे गळून जातात आणि आपल्यामध्ये श्रद्धा प्रस्थापित आणि आत्याच्या सुखाकडेच तुमचे लक्ष लागते. शारीरिक होते. त्यातूनच अनासक्तपणाची भावना जागृत गोष्टींचे महत्त्व वाटेनासे होते. शिवतत्त्व हे फार उन्नत झालेले रुप आहे. त्यांना कशाचीही पर्वा नसते. त्यांच्या केसांच्या जटा झालेल्या असतात. कपड्यांची त्यांना फ़िकीर नसते तसेच काय करावे भारतीयांचे असे नाही; कुठेही प्रवासाला गेले की अटॅ्ड- हे भान नसते हे सर्व काम त्यांनी विष्णूवर सोपवले आहे. आणि स्वतः त्यापासून पूर्णपणे अलिप्त झाले आहेत. त्यांचे वाहन नंदी आहे ज्यांना कुणीही माणसाळावत नाही. तो जिथे नेईल तिकडे शिव जातात. आपल्या स्वतःमध्ये ते अजून आहे. ते लोक म्हणतात "माताजी, आश्रमासाठी इतके पूर्णपणे स्थिरावले असल्याने लोक काय म्हणतील मोठी जागा घेऊ या." आपले भारतीय लोक आश्रमात याची ते पर्वा करत नाहीत. ते जेव्हा विवाह करण्यासाठी आले तेव्हा विष्णूंना वाटले "हा पुरुष माझ्या बहिणीचा पति आत्मप्रकाश मिळाल्यावर जेव्हा तुम्ही आतून सुंदर बनता तेव्हा या सर्व बरवरच्या गोष्टी फालतू वाीवला लागतात होते: इतर सुख तुम्ही उदासीन होता. आता है परदेशातील सहजयोगी पहा.तिकडे त्याची घरे फार मोठी आरामबद्दल असतात, गाडी वगैरे त्यांच्याजवळ असते. पण ते आपल्याकडे आले की असेल त्यात समाधानी असतात. ओ बाथरुमपासून त्यांना सर्वकाही पाहिजे असते, अजूनही ते या गोष्टींपासून वर आलेले नाहीत. मला आश्चर्य वाटते की भारतीसारख्या गरीब देशातील लोकांनाही भौतिक हाव रहायलाच तयार नसतात. आपण हा आश्रम खूप कष्ट करून व पैसे खर्च करून बाँधला पण इथे कुणाला रहायला 16 Marathi Translation (Hindi Talk) नाही. नको. आम्ही म्हटले की तुम्हाला खर्चाला सर्व पैसा पगार म्हणून देऊ तरी कुणी तयार नाही. आमच्या जन्मगावी. छिंदवाड्याला आम्ही खूप खर्च केला आणि वयस्कर निवृत्त काही विशेष नाही. तुम्ही काहीही केले तरी माताजी आई सहजयोग्यांना रहायला सांगितले, तिथली हवा छान आहे. म्हणून क्षमाच करणार. पण क्षमा केली गेल्यावरही ती स्थिति डोंगरावरचे स्थान आहे पण कुणीही जायला तयार नाही. तुम्हाला येत नाही. क्षमबद्दलची सर्वांत महत्त्वाची गोष्ट सगळ्यांना आपल्या आरामाची काळजी-माझं घर, माझी म्हणजे प्रत्येकाने शिवांकडे क्षमायाचना करायला हवी कारण जागा. माझे कुटुंब, माझे खाणं-पिणं- एवढच! जे करायला नको तीच चूक आपण पुन्हा पुन्हा करत खाण्यापिण्याच्या बाबतीतही फार चोखंदळ, सवयीमुळे भारतीय लोक फार कन्डिशन्ड असतात. परकीयांचे तसे नसते. ध्यानामधून आपण या सर्वापासून भागवण्याचा प्रयल करतो मुक्त झाल्याशिवाय आपली वाढ होत नाही. त्याग करण्याच्या बावतीत आपण मागे पडतो. एनु. ते हवे अशा गरजा- माझे घर, माझी पत्नी- जोपरयंत संपत जी. ओ. प्रकल्पासाठी जमीन खरेदी करण्यासाठी सहजयोग्यांना पूजा-वर्गणी वाढवायला सांगितले लगेच परदेशीय लोक ज्वांनी शिवांचे नावही कधी ऐकले नव्हते. त्यावर खूप प्रतिक्रिया, आरडाओरड झाली. तुमच्याकडून काहीही पैसे न मागता मी कार्य करत आले. पण एखाद्या माताजींच्या जवळ सर्व तहेचे भक्त आहेत, त्यात ा असतो. म्हणून आपण शिवांची (शिव-शंभू) क्षमा मागितली पाहिजे.. आपण चुका करते राहतो, आपल्या गरजा - आपल्या गरजा जोपर्यंत संपत नाहीत तोपर्यंत आपण शिवांकडे क्षमायचना करावी. हे हवे, आपल्या नाहीत तोपर्यंत आपण शिव-भक्त होत नाही. या बावतीत फार पुढे गेले आहेत. आपण अजून लहान-सहान गोप्टींनाच महत्त्व देत आहोत आणि त्यातच अडकून बसलो आहोत. चांगिल्या कार्यासाठी तुमच्याकडून पैसे मागितले तर काय शिवभक्त व्हायचे तर आपल्यामधील मत्सर आणि विधडले ? सर्व त्याग करणारे अनेक लोक मी आयुष्यभर निगेटिव्हिटी आपण दूर केल्या पाहिजेत. पण सहजयोगात पहात आले पण आजकाल ती भावनाच नाहीशी झाली येऊनसुद्धा लोक स्वतःकडे पाहू शकत नाहीत. एक महिला आहे. तस्े कुठे पहायलाच मिळत नाही. माझी आई, सहा साड्यांच्यावर एकही ठेवत नसे एक जरी जास्त आली तर तिला विचारले तर म्हणाली "मी कधींच कुणाला वाईट देऊन टाकणार. कबेलामधे जे लोक येतात त्यांना स्वतंत्र वागणूक दिली नाही." महणजे बघा. त्या सिनेमा बघतील खोली हवी असते, सगळ्यांच्या बरोबर रहायची इच्छाच नाही याचे मला आश्चर्य वाटले. जो सामूहिकतेत राहू शकत नाही तो सहजयोगी नाहीच. पण "मी मोठी विशेष व्यक्ति. माझी खास व्यवस्था हवी." असा माणूस नुसता नावाचा सहजयोगी. शिवाची पूजा करणार्यांनी शिवासारखे झाले सहजयोगात तुम्हाला गहनता येणार नाही. पाहिजे. त्याला कुठेही झोपायला जागा द्या, काहीही जेवायला द्या, जो काळाच्या पलीकडे गेला त्याला कसलीही बांधिलकी नाही. असा माणूसच खरा सहजयोगी. नाही. आता तुम्ही त्या स्थितीला आला आहात. मग तुम्ही तुमच्यामध्ये शिवांचा प्रादुर्भाव आला आहे. पण ही स्थिती गुलाम जगातील क्षुल्लक गोष्टींचे अजूनही कसे राहू मिळवण्यासाठी लोकांनी किर्ती तपस्या केली देव जाणे. आपल्या सुनेला अजूनही छळत असल्याचे मला समजले. मी आणि सुनेला सासुकडून छळ झाल्याचे पाहून रडायला लागतील पण घरी यऊन पुन्हा सारा तोच प्रकार सुरू! तीच गोष्ट सुनेची; ती पण म्हणणार "मी कधीच कुणाला त्रास दिला नाही." स्वतःशी आतमधून प्रामाणिक राहिल्याशिवाय सहजयोग तुमच्यामधे परिवर्तन घडवतो. तुम्ही आता सोन्यासारखे शुद्ध झाला आहात, सोन्याला कधी डाग पड़त शकता? हीच कुण्डलिनीची विशेषतः आहे, ती तुम्हाला पूर्णपणे स्वच्छ करते. आता सेवा कार्य, आता तुम्ही सेवा केली पाहिजे. मला तुमच्या सेवेची तर मुळीच जरुर नाही. मी स्वतःशी समाधानी आहे. मग माझ्याकरता तुम्ही काय इतरत्र कुठेही जा, तुमच्याजवळचे सारे पैसे लुबाडतील काय काय तन्हा करतील, पण सहजयोगात तसं नाही. पण ही आपली प्रवृत्ति जायला हवीं. आपण काय काय त्याग करू शकतो हेच पहात चला. ही 'मस्ति' जोपर्यंत तुम्हाला जाणवत नाही तोपर्यंत तुम्ही शिवांचे पूजारी गणले जाणार करणार ? एवढंच करा की तुम्ही पण ते समाधान मिळवा आणि त्याचा आनंद उपभोगा त्या आनन्दाच्या स्थितीमधे 17 Marathi Translation (Hindi Talk) काय केले असतील कुणाला ठाऊक! कारण ही स्थिति मिळाल्यावर तुम्ही सिद्ध - पुरुष बनता जसे शिरडचे तुम्हाला कळेल की या सर्व गोष्टी तुम्हाला आनंद देण्यासाठीच आहेत. सहजयोगात आल्यावर ती स्थिति प्राप्त केल्यानंतर इतर गोष्टींची तुम्हाला गरज कशाला वाटेल? साईनाथ; ते कुठेही प्रकट व्हायचे, प्रत्येकाला अडचणीत खूप विचार केल्यावर माझे मत आता असे झाले मदत करायचे. काही लोक सांगतात "माताजी, आम्ही आहे. सहजयीग अगदी सोपा आहे आणि म्हणूनच फार अवघड आहे. नाही तर दुणी तरी काठी उगारून तुमच्या असे संत-लोक अमर असतात. आणि ती अमर-अवस्था मागे लागून "आता डोक्यावरचे केस काढा, भगवी वस्त्े नेसा, चीदा दिवस खाणेपिणे नाही" असे म्हणू लागला तर ठीक होणार ! पण हृदयापासून, मनापासून व बुद्धि वापरून सहजयोग पत्करल्यावर आपले दोष व चुका सुधारून स्वतःला सुधारले पाहिजे. मी असं का केले. असं करायलाच हवे होते का असा सतत विचार करत करत पुष्कळ वाईट ते शिवांच्या शक्तीचे अंश असतात आणि ते सर्व गोष्टी तुम्ही टाकून द्याल आणि आपण 'समर्थ' असल्याचे तुम्हालाच कळेल. तुम्हाला कशाची गरज नाही; कशाची इच्छा नाही आणि आरामात बसला आहात आणि तुम्हाला हे यापैकीच आहेत. कुण्डलिनीच्या उत्थानानंतर ते रुद्र काहीच नको असल्याचे कळल्यावर हे परमचैतन्य तुमच्यासमोर भरभरुन ताट ठेवेल. कदाचित तुम्हाला मोहात प्रभावातून बाहेर खेचत राहतात. उदा. आपल्यामधे अहंकार पाडण्यासाठीसुद्धा तसे होईल. तुम्हाला गरज वाटेल आणि ती त्याच्याकडून पुरी होणार नाही असे होणारच नाही. आज आपण शिवांना खूप आवाहन केले आणि त्यांना असेच लोक आवडतात. माझ्या आणि त्यांच्यामधे फरक त्यामुळे अपमानित व क्षुद्र वाटून घेतो. पण जेव्हा हा रुद्र असा आहे की मला सगळ्या प्रकारचे लोक आवडतात तर शिवांना ज्यांनी आपले दोष, सववी, संस्कार सर्वांचा त्याग केला आहे असेच लोक आवडतात. आपल्या कण्डिशन्स अनेक आहेत. उदा. आपल्याला अमक्याच तहेचे कपडे त्यांना पाहिले" आणि मी म्हणारयचे "असे होऊ शकते. रे मिळवणे हीच शिवांची खरी पूजा. पुढील भाषण इंग्रजीतून झाले. आज मी तुम्हाला सहजयोगानंतर आपली आतली स्थिती काय बनते त्याबद्दल सांगणार आहे. तुम्हाला आत्मसाक्षात्कार मिळतो तेव्हा एकादश-रुद्र आलेले असतात. आपल्यामधे जीवनाबद्दलच्या ठाण मांडून बसलेल्या चुकीच्या कल्पना काढून टाकण्याचे प्रवलन करतात. वुद्ध व महावीर जागृत होतात. ते सर्व जण आपल्याला नको त्या गोष्टींच्या असतो त्याच्याकडे बुद्ध लक्ष ठेवतात. ते असं काम करतात का आपणच आपला अहंकार जाणून भयचकित होती; है समजल्यावर आपल्याला आश्चर्याचा धव्का बसतो आणि जागृत नसतो, जेव्हा त्याच्यामध्ये प्रकाश आलेला नसतो तेव्हा काय होते ? तर तुम्ही स्वतःचेच समर्थन करू लागता- आपण जे काय करतो. केले आहे, बोलून दाखवले आहे किंवा मिळवले आहे ते सर्व लागतो, आपले काहीच चुकले नाही असे समजतो. म्हणून या बुद्ध रुद्राचे जागरण व्हावे लागते. याच्या उलट तुम्ही अहंकारालाच गोंजारत राहिलात. अहंकारीपणा गाजवू लागलात की तुम्ही पूर्णपणे उजव्या वरोबरच आहे असं समजू हवे. ते नाही तर काय झाले ? पण सहज़योगामधे 'संन्यास" वाह्यातून नसतो तर आपल्या आतमधून असतो. आतून संन्यस्त' झाल्यावर तुमच्या इच्छाच संपतात. कुठेही असलात तरी आनंदी असता. पूर्वी 'नाथ-पंथी' होते आणि ते दूर-दूरवर हिंडून लोकांना उपदेश देत असत. ते कुठे-कुठे बाजूची व्यक्ति बनता आणि एकदा तसे झाले की तुमचे गेले याचे मला आश्चर्य वाटायचे. मी कोलंबियाला गेले होते व्यक्तिमत्व कसे होते हैे तुम्ही जाणताच अशा वेळी तुम्ही तिथे मला समजले की नाथपंथी बोलिव्हियालाही गेले होते शांतपणे स्वतःला बघून आत्मपरीक्षण केले आणि अहंकाराने कोलंबियाचा विमान प्रवास करताना तिथे विमान इतक्या उँचीवरून जाते की चक्कर यायला लागते आणि त्याकाळी चुकीच्या कल्पना आपल्या डीक्यात भरवल्या आहेत है लोक पायी तिथे गेले ! ते तिथे कसे पोचले असतील नला कळत नाही. ते रशिया आणि इतर देशांमधेही गेले होतेः त्यांनी एवढा प्रवास कसा केला असेल, त्यांनी कपड़े आपले काय नुकसान केले आहे, स्वतःबद्दलच्या काय काय जाणून घ्या. त्यासाठीच मोहम्मदसाहेबांनी सांगितले की स्वतःवरच जोडेपट्टी करा. आणखी दुसरे ते काय सांगणार? कारण हा अहंकार तुमच्या डोक्यामधे स्फोट घड़वून काय - 18 Marathi Translation (Hindi Talk) घाबरवण्यासाठी काय काय वर्णने करतील मलाच सांगता येणार नाही. पण त्याचाही काही उपयोग होत नाही आणि काय समस्या समोर आणील याचा भरवसा नसती आणि शेवटी त्या माणसाला असा विचित्र रोग(Yuppies) कोतो ज्या मुळे तुमचे मन आणीव अजिबात काम करेनासे लोक जास्तच डावीकडे झुकायला लागतात आणि या रुद्राजवळ जातात. हे रुद्रही जेव्हा काही करु शकत ा। होऊन निकामी बनते. जाणतेपणाने माणूस हालचाल करू शकत नाही, अजाणता हालचाल होईल पण जाणीवपूर्वक नाहीत तेव्हा मात्र प्रचंड नैराश्य येते. अरे देवा, कारय है नैराश्य, मला काहीतरी झालंगू असं म्हणूं लागतात. दुसन्यांना घाबरावून टाकता आणि लागते कारण स्यांना चालणे शक्य नसते, स्वतःहून ते चालू त्यांच्या भावनिकतेला बदनाम करता; वेडेवाकडे चाळे करुं लागता आणि स्वतःचेच डोके बडवायला लागता. हे नाही होणार, हा रोग इतका भवानक आहे की माणूस त्यातूनच तुम्ही सरपटणार्या प्राण्यासारखा होतो. त्यांना अंगावर घेऊन जावे शकत नाही किंवा खाली बसू शकत नाही, हा रोग तरुण वयातही होऊ शकतो. अहंकारातून किंवा डावीकडच्या समस्यांमुळे होते. हे दोन्ही रुद्र आपल्या डाव्या व उजव्या सिंपथेटिक पूर्णपणे संबंधित असल्यामुळे फार महत्वाचे आहेत. म्हणून तुम्ही या रुद्रांच्या तावडीत पडणार नाही याबद्दल सतर्क राहिले पाहिजे; त्यांना प्रसन्न ठेवणे म्हणून स्वतःच्या अहंकाराकडे लक्ष ठेवा, त्यावर नियंत्रण ठेवा आणि त्या दोपाबद्दल क्षमाशील व्हा. महजयोगामधे आपल्याला पश्चात्ताप वाटत नाही हा प्रकार नव्हसनसस्टिम बरोबर नाही कारण आपला विश्वास असती की आपल्याला आत्मसाक्षात्कार झाला आहे आणि आपण चुकीच्या जरुरीचे आहे. म्हणून अहंकार आणि स्वतःचीच कीव करण्याची भावना यांच्यावर नियंत्रण करणाऱ्या या दोन्ही गोष्टींपासून दूर आहोत. पण हे खरं नाही. आपल्याला पश्चाताप झाला पाहिजे. आता इंग्रजी भाषेमधे "सॉरी" हा रुद्रांना तुम्ही सांभाळले पाहिजे म्हणजे तुम्हाला त्रास होणार प्रकार आहे, प्रत्येक गोष्टीबद्दल 'सॉरी' टेलिफोन नाही: तसेच 'मला हे जमणार नाही, ते नको' इ. तक्र री उचलल्यावरसुद्धा ते म्हणणार "सॉरी, मी म्हणते सारी व नैराश्य दूर होतील. कारण त्याच्यांमुळे पुढे फार गंभीर प्रश्न, कॅन्सरसारखे आजार होण्याची शक्यता असते. रुद्र ा कशाबद्दल ? हा नुसता पीकळ शब्द आहे. त्याला अर्थ नाही आणि त्यात खोली (प्रामाणिकपणाची) पण नाही. तुम्ही सॉरी म्हणता तेव्हा काय चूक झाली म्हणून ते म्हणता आणि ती पकडले गेले तर दोन्ही बाजूंना सूज येते. त्याला 'मेधा म्हणतात, कॅन्सरचा माणूस पाहिलात तर त्याला सगळीकडे ा कशी सुधारणार इकडे बघा. आजकालच्या आधुनिक सूज आल्याचे दिसतें; कपाळाच्या डाव्या किंवा उजव्या पिढीमध्ये हा मोठा प्रश्नच आहे कारण आपल्याकडील बाजूकडे तरी सूज आढळते रुद्रांचा हा त्रास डावीकडून आर्थिक भरभराटीमुळे, औद्योगिक प्रगतीमुळे, मोठमोठ्या उजवीकडे किंवा उजवीकडून डावीकडे इतक्या नकळत झुकतो आणि त्या व्यक्तीच्या स्वभावात न समजण्यासारखे बदल फटकनन दिसतात की कुठल्या रुद्राचा त्रास आहे हे सहजासहजी लक्षात येत नाही. मनोविकाराचे सर्व आजार हे दोन रुद्र काम करेनासे झाल्यामुळे होतात. सतत नैराश्य किंवा आक्र मकपणा या दोन्ही प्रवृत्तीमुळे असे त्रास होतात असू शकतात पण ते सर्व सदाशिवांच्या शक्तीचेच भाग असतात. त्यांचा स्वभाव करुणेने ओतप्रोत भरलेला आहे. करुणेचे ते सागरच आहेत संस्थांमुळे आपला अहंकार वाढायला उत्तजनच मिळत आहे. तसं नाही केले तर आपला तरणापाय नाही. आपल्याला कुटेच किंमत राहणार नाही.म्हणूनच आपण अहंकाराचा वडेजाव मानती आणि हे उजव्या बाजूचे प्रश्न चालू होतात. प्रतिक्रिया म्हणून मस्तकाच्या डाव्या बाजूवर त्याचा दबाब त्याची आणखी काही कारणेही वेतो. उजव्या बाजूला अहंकार बळावती. डावीकडचे रुद्र महावीर आहेत. म्हणून लोक चुकीच्या, अनैतिक गोष्टी करू लागतात जे श्री गणेशांच्या विरोधात असते. महावीरांजवळ नियंत्रण करणार्या शक्ति असतात. ते त्यांना नुसती क्षमा मागितली की लगेच क्षमा करतात. पण तुम्हाला नरकात जायला सांगतील. आणखी काहीतरी तुम्हाला जर असं वाटत असेल की तुम्ही जे काही करता ते होईल, अनेक नरकयातनांचे वर्णन करतील, तुम्ही नरकात जाणार व जिवंत गाडले जाणार, असे तुम्हाला कधीच योग्यच आहे. तुम्ही कधीच कुणाचा छळ केला नाहीत. कुणाला दुःख दिल नाही तर मात्र त्यांना सर्व काही 19 Marathi Translation (Hindi Talk) आधीच समजलेले असते. आणि ते जाणतात म्हणून ते साध्य करु शकलो तर मला वाटते खूप मोठे कार्य होईल: सर्व मानवजातीच्या कल्याणाचे होईल आणि त्याचसाठी त्याची त्याग करु पाहतात. त्या स्थितीत येण्याची तुमची प्रबळ इच्छा व शिवाचे आशीर्वाद एकमेकांना पूरक असतात. शिवाचे आशीर्वाद आपल्याला आत्मसाक्षात्कार मिळाला आहे. तुमच्या स्वतःकरतां, तुमच्या कुटुंबाकरता, शहरापुरता किंवा मिळाले की तुमची इच्छा अधिकाधिक प्रखर होत जाते. पण देशापुरता नव्हे तर सर्व जगासाठी सहजयीग हे घहवून आपले व्यक्तिमत्व एका अत्युच्य स्तरावर नेणे आपल्या हिताचे आहे हे जाणण्यासाठी तुमची इच्छाशक्ति पूर्णावस्थेला यायला हवी. ते स्वतः फालतू सामान्य आणणार आहे. तुमच्यामधें स्पर्धा असेल तर ती दुसर्या कशासाठी नसून आपल्या उन्नतीसाठी स्पर्धा हवी. पण लांक इतके माणसासारखे नाहीत. समजा शिवांना तुम्ही एखाद्या पार्टीला उथळ आहेत की त्यांना वाटते की वरवरचा देखावा करुन जाऊ असे म्हटले तर ते कसे दिसतील ? तिथले लोक किंवा आपण कोणी विशेष आहात असे दाखून आपण कही विशेष असे मिळवू शकूं. तुम्ही अशी नम्रता मिळवली मला काही हिप्पी लोक भेटले तेव्हा मी त्यांना पाहिजे स्वतःही इतके नम्र बनले पाहिजे की तुम्ही जे कांही "तुम्ही तुमचे केस असे का ठेवता?" तर ते कराल ते सर्व जगाच्या कल्याणासाठी आहे हे तुम्हालाच आम्हाला आदिवासी बनायचे आहे." मग मी समजेल. आणि हे घटित होणारच आहे कारण त्यासाठीच तुमचा मैंदू आता प्रगत झाला आहे तर मग तुम्ही या परमचैतन्याचे वाहक बनले आहांत, मी जर एकटी हें करुं शकत असते तर मी केले असते पण तसे ते होणार स्यांच्याकडे पाहून हसणारच. म्हणाले ाि म्हणाले आदिवासींसारखे केस ठेऊन काय उपयोग होणार आहे?" म्हणजे स्वतःची अशी फसवणूक करण्यात काही अर्थ नाही. सर्वांत चांगले म्हणजे आत्मपरीक्षण करुन स्वतःचे काय चुकत आहे हे जाणावे. असे जर धडून आले, इथे बसलेल्या सर्व सहजयोग्यांनी तसे करुन स्वतःला सुधारले तर राजकीय, आर्थिक आणि इतर सर्व प्रश्न सुटतील अशी माझी खात्री आहे. पण आजकाल या कलियुगामुळे असा नाही. म्हणूनच मी तुम्हाला एकत्र आणून सांगत असते की तुम्ही लोकच परमशक्तीचे वाहक बनायला हवे. पण तसे होतांनाही तुम्ही आनन्द मिळवीत आहांत,जीवनांतील प्रत्यंक क्षण आनन्दाचा होत आहे आणि ही शिवांचीच कृपा आहे. जे कांही घडत आहे,क्षणाक्षणाला जे महान कौतुकास्पद व वाखाणण्यासारखें होत आहे ते सर्व शिवांकडूनच होते आहे. आणि स्वतःचा घिक्कार न करता किंवा अहंकागचा बडेजाव न करता स्वतःला नीटपणे ओळखण्याची स्थिति तुम्हाला मिळवायची आहे. हीच फक्त महत्वाची गोष्ट आहे. प्रकार झाला आहे की अगदी खराब लोकांचीही चलती आहे. जगाला वाचवण्याची जबावदारी आपल्यावर आहे. जवाबदारी अशी की आपल्याला एक महान आदरणीय तुम्हाला आता व्यक्ति बनायचे ज्यामधे वरबरच्या गोष्टी, नसता ं काय करमी आहे? तुम्हाला कीाय प्रश्न- अडचणी आहेत ? अडचण हीच आहे की तुम्हीच दिखाऊपणा याला थारा नाही तर आतून अशी उन्नतावस्था तुमच्यामधे अडचणी निर्माण करत आहांत. तुम्ही जर हैं जाणण्याची खरी क्षमता मिळवू शकाले तर तुम्ही साया जगाला तोच आदर्श दाखवू शकाल आणि जगामथें परिवर्तन घडवून आणाल अशी मला खात्री आहे. एरवी है खोलवर रुजलेले प्रश्न वरवरच्या उपयांनी सुटणार नाहीत. कुण्डलिनी तुमच्यावर प्रसन्न झाली आहे आणि तुम्ही दीपस्तंभासारखा सत्याचा, प्रेमाचा आणि आनंदाचा प्रकाश सर्वांना देऊ मिळवायची की आपल्या आत्यांचा प्रकाश आजूबाजूला पसरेल आणि या जगाला प्रकाशित करेल. हे समजून घेणे फार महत्वाचे आहे. आपले सर्व प्रश्न मनोविकाराचे आजार, एवढेच नव्हे पण या कलियुगातील मानवाच्या सामूहिक जीवनामधील राजकीय व आर्थिक प्रश्न ही सारी परिस्थिती माणसांनीच बनवली आहे. ते काही देवाने निर्माण केले नाहीत; उलट परमेश्वरी शक्ति या सर्वांचे परिणाम सुसह्य करण्याच्या प्रयत्नांत असते. सहजयोग खर्या अर्थाने जगणारे पुष्कळ सहजयोगी जर तयार झाले, असे आपण शकाले. परमेश्वराचे तुम्हांला अनंत आशीर्वाड. ০ ০ 20 ---------------------- 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page0.txt Mahashivaratri Puja Date 16th March 1997 : Place Delhi : Type Puja Hindi & English Speech Language CONTENTS | Transcript | 02 - 06 Hindi 07 - 09 English Marathi || Translation 10 - 12 English 13 - 15 Hindi 16 - 20 Marathi 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari (First, I will speak in Hindi language and then in English. We are such a cosmopolitan people that I don't know what language to take to. [Shri Mataji speaks in Hindi]) आज हम लोग शिवजी की पूजा करने जा भी चीज का महत्व नहीं रह जाता। रहे हैं। शिवजी के स्वरूप में एक स्वयं साक्षात अब शंकर जी की जो हमने एक आकृति सदाशिव हैं और उनका प्रतिबिम्ब शिव स्वरुप है। देखी है, एक अवधूत, पहुँचे हुए, एक बहुत कोई ये शिव का स्वरूप हमारे हृदय में हर समय औलिया हो, उस तरह के हैं। उनको किसी चीज़ आत्मस्वरूप बन कर स्थित है। ये मैं नहीं कहूँगी की सुध-बुध नहीं, बाल बिखरे हुए हैं, जटा जूट बने कि प्रकाशित है जब कुण्डलिनी का जागरण होता हैं। कुछ नहीं, तो बदन में कौन से कपड़े पहने हुए हैं, क्या कहें, इसका कोई विचार नहीं। ये सब है तो ये शिव का स्वरूप प्रकाशित होता है और वो हुए प्रकाशित होता है हमारी नसों में। चैतन्य के लिए काम उन्होंने नारायण को, विष्णु को दे दिया है। वे कहा है 'मेदेस्थित', प्रथम 'इसका प्रकाश हमारे स्वयं मुक्त हैं। व्याघ्र का च्म पहन कर घूमते ह मस्तिष्क में, पहली मर्तबा हमारे हृदय का और और उनकी सवारी भी नन्दी की है जो किसी तरह हमारे मस्तिष्क का योग घटित होता है। नहीं तो से पकड़ में नहीं आ सकते। कोई घोड़े जैसा नहीं सर्वसाधारण तरह से मनुष्य की बुद्धि एक तरफ कि उसमें कोई लगाम हो, जहाँ नन्दी महाराज और उसका मन दूसरी तरफ दौड़ता है। योग जायें वहाँ शिवजी चले जाएं। उनको किसी चीज़ में घटित हो जाने से जो प्रकाश हमारे अन्दर आत्मा कभी ये ख्याल नहीं आता कि लोग क्या कहेंगे, से प्रगटित होता है वो चैतन्य स्वरूप बन कर हमारे दसरों का क्या विचार होगा? हम अगर ऐसे कपड़े हाथों और तालू से प्रवाहित होता है। ये तो आप पहनकर और नन्दी पर बैठकर इधर-उधर भटकें लोग जानते हैं; पर आगे की बात समझने की यह तो लोग हमें क्या कहेंगे ? क्योंकि वो अपने ही तो है कि जब यह प्रकाश हमारे अन्दर आता है अन्दर समाये हुए हैं। अपने ही खुशियों में बैठे हुए धीरे-धीरे हम देखते हैं कि हमारी जिन्दगी बदलने हैं। उनको कोई भी संसार से ये मतलब नहीं है कि लगती है, हमारे अन्दर का क्रोध और हमारे जो दुनिया हमें क्या कहेगी, लोक-लाज क्या होती है। षटरिपु हैं वो खत्म होने लगते हैं धीरे-धीरे सब ये तो इनके विवाह में भी आपने वर्णन होगा सुना चीजें गिरती जाती हैं और मन में श्रद्धा प्रस्थापित कि जब ये विवाह करने आए तो श्री विष्णु ने जब होती है। श्रद्धा में त्यागबुद्धि जागृत होती है, किसी देखा तो उन्होंने सोचा कि ये क्या दूल्हा मेरी बहन 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi के लिए आया है, बेकार सा! इससे कैसे मेरी बहन है। हिन्दुस्तानी अब भी जहाँ जाते हैं उनको बाथरूम शादी करेगी ? लेकिन पार्वती जी जानती थीं कि चाहिए साथ जुड़ा हुआ। पता नहीं और दुनिया भर अभी तक इससे उठ नहीं पाए हैं । उनके योग्य यही पति है जो एक मस्त-मौला की चीजें 1. आदमी है। किसी चीज़ की उनको कद्र नहीं है। स्वभावतः मुझे आश्चर्य होता है कि अपने गरीब देश सब चीज़ों से जब आदमी ऊपर उठ जाता है तो में भी लोगों में अभी काफी कामनाएं बची हैं। बड़े आश्चर्य की बात है! हमें लोगों ने कहा कि माँ एक उसके लिए सब चीज़ एक किन्चित पदार्थ हो जाती आश्रम के लिए एक बड़ी सी जगह ले लें। हमारे हैं। उसका ध्यान इस ओर नहीं जाता। ये शिवजी का जो अवतार हम लोग देखते हिन्दुस्तानी कभी आश्रम में रहते नहीं। अब ये हैं हमें बहुत प्यारा लगता है, मोहक लगता है और आश्रम जब हम लोगों ने बनाया, इतनी मेहनत से, सब लोग सोचते हैं कि शिवजी का सारा ही काम खर्च करके तो इसमें रहने के लिए कोई तैयार कुछ तो भी विशेष है। लेकिन जब सहजयोगियों में नहीं। हमने कहा बाबा हम तुमको तनख्वाह देते हैं. शिवजी का प्रकाश आ जाता है तो उनका भी तुम रहो। पर तैयार नहीं। मेरा जो जन्मस्थान है. जीवन बदलने लगता है। मैंने देखा है कि जैसे छिन्दवाड़े में, उस घर के लिए इतना रुपया-पैसा पहले सहजयोग में आए, औरतें भी, आदमी भी, सब खर्चा किया और मैंने कहा जो रिटायर हो गए हैं वहाँ रहें। बड़ी अच्छी आबो-हवा है, पहाड़ी स्थान सजना-धजना शुरु कर देते थे। सारा ध्यान इसी में रहता था कि आज क्या पहनें, कल क्या पहनें, है कोई रहने को तैयार नहीं। सब अपने आराम को सोचते हैं इन लोगों में यह बात नहीं है वे और आजकल तो इसका प्रादुर्भाव बहुत हो गया है क्योंकि सब जगह बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधन गृह निकल आए हैं, ये है, वो है, तो औरतें इसमें बहुत लोग आश्रमों में बड़े सुख से रहते हैं। मेरा घर, मेरी जगह, मेरी बीवी, खाना बनना चाहिए इस तरह से फँसी हैं। पर जब आपके अन्दर से निखार, आपके ये यही खाना खाएंगे। हम लोग इतने स्वाद में सौन्दर्य का, इस प्रकाश से आता है तब इन सब उलझे हुए हैं। इन लोगों में ये स्थिति नहीं है । हिन्दुस्तानी खाना भी शौक से खाते हैं। लेकिन मुझे चीज़ों का कोई महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह आराम, आराम भी एक तरह से आत्मा का ही मालूम है कि जब हिन्दुस्तानी कबेला आते हैं तो अपनी रोटियाँ, परांठे-वराठे, अचार-वचार बाँध के आराम मनुष्य खोजता है। अपने आराम से दूर लाते हैं क्योंकि उनके जीभ से नहीं उतरेगा । सभी रहता है। इसमें जो परदेशी लोग हैं, इनको देखिए, ये बड़े-बड़े घरों में रहते हैं, इनके पास मोटरे हैं तो जीभ में ही फॅसा हुआ है सो ध्यान करने से सबकुछ, रईस हैं। पर यहाँ आते हैं तो हर जगह जब तक ये चीजें छूटेंगी नहीं तो आप धर्म से परे नहीं जा सकते। एक छोटी सी बात समझने की है समा जाते हैं। पर हिन्दुस्तानियों का ये हाल नहीं 3 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi कि त्याग में भी हम लोग कम पड़ जाते हैं। इस नहीं सकता वह सहजयोगी नहीं है। वो अभी बार इन्होंने कहा कि माँ आप इतनी बड़ी जमीन ले भी सोचता है कि मैं कोई विशेष हूँ, मेरा अलग रहे हैं, इतना खर्चा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सब इंतजाम होना चाहिए। वो सहजयोगी नहीं हो थोड़ा सा ज्यादा पैसा कर दो। न जाने कितनी सकता। वो नाम मात्र को सहजयोगी हैं। जो शंकर चिट्ठियाँ मेरे पास आईं कि आप पूजा का पैसा जी का भक्त है उसको शंकर जी जैसा होना है। कहीं भी सुला दो, कहीं भी बैठा दो, कुछ भी खाने कम कर दीजिए, पूजा का पैसा कम कर दीजिए । अरे भई एक बार दिल्ली में पूजा हो रही है उसमें को दो, उसको किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं भी चिट्ठियों पर चिट्ठियाँ । पान खाकर लोग फेंक है। समय की पाबन्दी नहीं, किसी चीज की माँग देंगे लेकिन पूजा में जरूरी है पैसा देना! आपसे नहीं; ऐसा ही आदमी, हम कह सकते हैं, सहजयोगी पहले हमने कोई पैसा नहीं है । लिया। सारी चीजें शिवजी का आपके अन्दर प्रादुर्भाव हो गया। अपने ही दम पर सब करी। लेकिन इतना सा कहते ही आज आधा मण्डप खाली है। क्यों ? लोग तो इसको प्राप्त करने से पहले ही न जाने क्या-क्या कर्म करते हैं। और किसी पद्धति में आप क्योंकि पूजा का पैसा नहीं देना। फोन करते हैं कि हमारी पूजा माफ कर दीजिए। अरे भई आप कोई जाइए वो आपके सारे पैसे नोच लेंगे, आपके सारे कम नौकरी हो ऐसा नहीं है । हमारे पति देंगे मैं बाल नोच लेंगे पता नहीं क्या-क्या करेंगे। सहजयोग में ऐसा नहीं है लेकिन ये वृत्ति, जो अब भी हमारे नहीं दूंगी। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। अभी अगर अन्दर बनी हुई है, इसको छोड़ना चाहिए । यह कोई औघड़ गुरु होते तो आप लोगों के सबके बाल अ मुंडा कर और आपको गेरुआ वस्त्र पहनाकर सर प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्या-क्या चीज़ छोड़ सकते हैं जब तक ये मस्ती आपके अन्दर नहीं के बल खड़ा कर देते। लेकिन मैं यह नहीं चाहती, क्योंकि सहज की बात है। सब चीज़ सहज में आएगी तब तक आपको शिवजी का भक्त नहीं कह आना चाहिए। हमने बहुत लोगों को त्याग करते सकते। माता जी के तो हर तरह के भक्त हैं। अपने जीवन में देखा है। और आजकल लोगों में उसकी कोई विशेषता तो है नहीं। सब तरह के मैंने वो देखा ही नहीं। हमारी माँ का मुझे मालूम है भक्त हैं, चाहे जो भी करें, चलो माँ ही है, माँ माफ कर देती हैं। पर माफ कर देने से आप उस पद को कि छःसाडियों से सातवीं साड़ी उनके पास हो जाए तो दे डालती थीं वहाँ भी लोग आते हैं प्राप्त नहीं कर सकते। माफ करने की बात सबसे 1 बड़ी यह है कि शिवजी से हर समय माफी माँगनी कबेला में तो आश्चर्य होता है कि उन्हें अलग से कमरा चाहिए, घर चाहिए, अलग से रहेंगे। सबके चाहिए, हर समय क्षमा माँगनी चाहिए, क्योंकि साथ नहीं रहेगें। जो सब के साथ मिलकर रह पग-पग हम ऐसे काम करते हैं जो हमें नहीं करना 4 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi चाहिए। उनसे क्षमा माँगनी चाहिए कि, हे शम्भो इससे तो आपका सोना हो गया और सोने पर तो हमें क्षमा कर दें हम ये गलती करते हैं, हम वो कोई कलंक लग ही नहीं सकता, उसपे कोई चीज गलती करते हैं, हमारे अन्दर ये जरूरतें हैं, हमारे चढ़ ही नहीं सकती। वो अब आप हो गए हैं, उस अन्दर वो जरूरते हैं. हमको ये चाहिए, हमको वो स्थिति को प्राप्त करें। अब भी क्यों ये गुलामी चाहिए । जब तक चाहिए. अपने अन्दर हैं, तब तक दुनिया भर की चीज़ों की ? यही कुण्डलिनी की आप परमात्मा से क्षमा माँगे। मेरा घर मेरी बीवी, विशेषता है कि यह आपको पूरी तरह से सफाई में इस तरह एक अधिकार की भावना, जो हमारे डाल देती है। सेवा, हाँ भई सेवा भी करनी चाहिए. पर मुझे तो कोई सेवा खास आपकी चाहिए नहीं। अन्दरं है, इसको जब हम छोड़ नहीं सकते तो हम शिवजी के भक्त नहीं हो सकते। इस मामले में मैं खुद ही मस्त-मौला हूँ मुझे आप क्या सेवा देंगे? आश्चर्य की बात है कि परदेश के लोगों ने तो सिर्फ ये है कि आप अपने अन्दर ये मस्त-मौलापन इतना पा लिया, जिन्होंने कभी सुना भी न था ले आइए। एक आनन्द में विभोर रहने पर ये शिवजी का नाम और हम लोग अभी भी उसी में सोचना चाहिए कि यह सब चीजें कुछ तो आनन्द हैं, और उसी को इतना मानते हैं। चिपके ही के लिए हैं और वो आनन्द हमको अगर मिलता हुए शिव होने का मतलब यह है कि सर्वथा ही है बगैर कुछ किए तो ये सब करने की क्या दुनिया भर की जो हमारे अन्दर लोलुपता है. जो जरूरत है ? बहुत कुछ सोचने पर मैं इस नतीजे पर उसको छोड़ देना है। पर मनुष्य सहजयोग में आने पहुँची हूँ कि सहज जो है वो है तो बहुत सरल और इसलिए बहुत कठिन है। अगर कोई डण्डा हमारे अन्दर नफरत है, जो हमारे अन्दर दुष्टता है पर भी अपने को देख नहीं पाता। मैंने सुना एक सास हैं जो अपनी को सता रही हैं। मैंने कहा लेकर खड़ा हो और कहे कि चलो सब बाल बहू तुम क्यों सता रही हो तो वो कहने लगी मैंने तो मुंडाओ, गेरुए वस्त्र पहनो, 14 दिन तक भूख सताया ही नहीं। सिनेमा में जाएंगे, देखेंगे कोई हड़ताल, तो हो गया। उसमें ठीक हो जाते हैं। पर सास बहू को सता रही है तो रोएंगे, वही और घर जो सहज है उसको अपने हृदय से, अपने मन से, में आकर बहू को सताएंगे या बहू सास को अपनी बुद्धि से स्वीकार्य करके और उसमें अपनी ही सताएगी । लेकिन कहेंगे कि मैंने कभी किसी को ताड़ना करना, अपने को ही ठीक करना, मैं ऐसे सताया ही नहीं। इस तरह के झूठ को अपने क्यों करता हूँ? ऐसा मुझे करना चाहिए क्या ? आवरण में रखकर सहजयोग में आप उठ नहीं इसमें बहुत कुछ छूट जाएगा और इससे एक तरह सकते। क्योंकि ये आप की जिन्दगी बदल देता है, से आप अपने को पाइएगा कि आप समर्थ हैं। 5 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi आपको कोई चीज़ की गरज नहीं, आपको कोई नाथ लोग थे, वे भ्रमण करते थे, दुनिया भर में जाते चीज़ की इच्छा नहीं, बस बैठे हैं आराम से। और थे और उन्होंने बहुत कुछ लोगों को शिक्षा दी | मैं आश्चर्य की बात है कि जब चैतन्य यह जानता है तो हैरान हुई कि ये लोग कहाँ-कहाँ पहुँचे थे। 1 कि आपको कोई चीज़ की गरज नहीं तो आपके कोलम्बिया में गई थी तो वहाँ पता हुआ कि सामने थाली परोस कर लाता है। हो सकता है बोलीविया में ये लोग आए थे अब कोलम्बिया में प्रलोभन के लिए हो। फिर देखिएगा आपको क्या अगर आप जाएं तो हवाई जहाज में चक्कर आने है। कोई आपकी जरूरत ऐसी है ही नहीं जो लगते हैं इतना ऊंचा है। और उस वक्त तो स पूरी नहीं कर सकता। पर इसमें थोड़ी सी लगन पैदल ही लोग जाते होंगे ! तो ये गए कैसे होंगे ये होनी चाहिए। ही समझ में नहीं आता ? रूस में, रूस के और भी आज शिवजी का हम लोगों ने इतना आहान देशों में इनका भ्रमण हुआ, और कैसे करते थे, कहाँ किया और उनको तो ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। रहते थे, क्या पहनते थे, कुछ पता नहीं। क्योंकि वो उनमें हममें यही फर्क है कि हमें सब तरह के लोग दशा आ जाती है फिर आप एक चमत्कार पूर्ण अच्छे लगते हैं उनको नहीं। उनको ऐसे ही लोग इन्सान हो जाते हैं। जैसा हम जानते हैं कि शिरडी अच्छे लगते हैं जिन्होंने ये सब छोड़ दिया ये सब के साईनाथ, कहीं भी उद्भव होता है उनका, वे कहीं भी आते है। कहीं भी किसी की मदद कर देते व्याधियाँ हैं हमारे अन्दर। एक-एक चीज़ में कि भई कपड़े ऐसे पहने, नहीं पहने तो क्या हो जाएगा ? हैं। लोग कहते हैं माँ हमने तो उनको देखा. हाँ लेकिन हमारे यहाँ सन्यास बाह्य का नहीं माना देख सकते हैं, क्यों नहीं ? ऐसे लोग अमर हो जाते जाता, अन्दर से; अन्दर से आप सन्यस्थ हो जाएंगे हैं क्योंकि उनकी मारने वाली जो वृत्तियाँ हैं खत्म और सन्यस्थ होने पर कोई भी चीज़ की कामना हो गईं फिर वो अमर हो जाते हैं और इसी नहीं रह जाती। जहाँ है वहीं मस्त बैठे हैं। पहले अमरत्व को प्राप्त करना ही शिवजी की पूजा है । 1 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page6.txt ORIGINAL TRANSCRIPT ENGLISH TALK I am talking to them about Shiva's worship – what should happen to you. But today, I am going to tell about the internal happening within us when you get your realization. There are eleven rudras you placed here – eleven rudras. They are particles, we can say, anshas as they call it, of Shiva's powers. And all of them try to take out, or to remove all the false ideas we have about life. When the Kundalini rises, they all get enlightened - eleven of them. And, say for example, Buddha had a part of that; Mahavira had a part of that. Now, all of them, what they do is to control us from falling into the prey of various things. Like, we have an ego. So, Buddha will look after the ego part. He will see that you get shocked by your ego. You will be quite amazed how you could be so egoistical, and so insulting, and so humiliating. But when this rudra is not awakened, when there is no light in this rudra, then what happens? You start justifying yourself. You think whatever you do is correct, whatever you've done, whatever you've said, whatever you have achieved, you think is your right. You've done nothing wrong. For that, this Buddha's rudra has to be awakened. On the contrary, if you go on pampering your ego, if you go on becoming egoistical, you become absolutely a right-sided personality. Once you are a right-sided personality, you know what all the symptoms there are of such a person. Now, for that if you just watch and introspect and see for yourself what ego has done to you, what wrong ideas you had about yourself. So that's why Mohammed Sahib has said, “Beat yourself with shoes." He didn't know what else to tell. Because this ego business can really burst you, your head completely, and you may land up into so many difficulties. Ultimately, I have seen people developing this yuppie's disease where the conscious mind becomes absolutely useless, cannot move. Consciously people cannot move. Unconsciously they will, but not consciously. And this disease is so horrible. A person becomes like a reptile. You have to them on your body. They can't walk on their own. They can't sit on their own. In a very young age 99 carry this can happen. This is happening in America. Also, I have seen two, three cases here, in India, also such a thing is happening. So if you do not try to see your ego and control it, and feel repentant about it. In Sahaja Yoga, there is nothing like repentance, we don't believe in repentance. Because we believe that you all have got your realization. You are beyond any mistakes. It's not true. We have to repent. There's a, in English, there is a word – sorry. Sorry, for everything they will say sorry. Even telephone if you pick up, they'll say, “sorry." I say, "Sorry, for what?" But this sorry itself is very empty. It has no meaning. It has no depth. When you say "sorry," you have to see why you are saying "sorry," and what is to be corrected. This is a very big problem of today's generation where people have developed such tremendous ego - because all our economic growth, all our industrial developments, all our big, big organizations, all of them have given us a way that we should all develop our ego. If we don't develop our ego, we will be lost; we are nowhere. And that's how we start pampering it, and then this right-sided problem starts. Then as a reaction, it goes to the left side. 99 Actually, in the head it is on the right side. Here is the right side ego comes up, so the left rudra is that of Mahavira. So people do things, which are sinful, which are wrong, which are against Shri Ganesha. Then also there are controlling powers of Mahavira, who controls. He says, "You will go to hell. This will happen." He describes all the hell, all kinds of hell, that you'll go to hell and you'll be burnt alive - I don't know, all kinds of things He describes to frighten you. But that doesn't help. So people start getting more onto the left side and, I should say, through this rudra, when this rudra gets helpless, then a tremendous depression comes in. One feels very depressed. "Oh God. What a depression I have. I am so sick. I am this thing." And then you try to frighten others with your 99 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page7.txt Original Transcript : English depressions. You show sort ofa, what you call, a emotional blackmail you do. All kinds of things you will do, and beat your head and do all kinds of things. Could be through ego, could be through this left side problem of the left rudra. These two rudras are very important because they are directly connected with our left and right sympathetic nervous system. So, it's very important to see that you don't fall a prey to these rudras. These rudras are to be satisfied. So to be normal, at least look after these two rudras, which are: one is one who controls the ego, and another is self-pity. "I just can't do it, I'm this, that" and all kinds of depression. All this works out into, physically also, into very serious problems like cancer. If the rudras are caught up, you develop cancer. But all this portion gets swollen up. It's called as the medha. This all portion gets swollen up, and you can see a cancer patient having a swelling all over. At least would be here, or may be there. Because such a swing in the nature of a person that you can't say from which rudra they have developed these psychosomatic troubles. Psychosomatic troubles, all of them, come because the rudras have become ineffective. It can be due to the depressive nature or oppressive nature. It could be due to many other factors also. But all these factors are nothing but part and parcel of Shri Shiva's, or Sadashiva's powers. He is the one who is full of karuna - full of compassion. He is the ocean of compassion. If you ask Him forgiveness, He will forgive. Whatever you do, instead of feeling guilty if you ask forgiveness, then He forgives. But if you think you, whatever you've done is good, you've never tortured anybody, you have never made anybody suffer, then it knows. Shiva knows everything, isn't it? And, because it knows, it starts giving up. So there's a big combination of your will power to be there, and the combination of the blessings of Shiva. When the Shiva blesses you, your will power also heightens. But you must have full will power to know that you have to be of a higher level of personality. He was not at all a mundane type. I mean He was... supposing, ask Shiva to go to some party and all that, how will He look there? People will laugh at Him. When I met some hippies, I said, "Why are you having this kind of hair?" So they said, "We want to…." They are all primitive. So he said, "I want to be primitive." I said, "But the brain is modern. What's the use of having primitive hair?" 99 So, deception; Deceiving yourself is not going to help. Best thing is to face yourself and understand what wrong you have been doing. If it works out, I tell you, so many Sahaja Yogis you are sitting here. If you correct yourself and become that, I am sure all the problems - political, economic, and all stupid problems we have - will be finished. But today it's such a mixture, due to Kali Yuga, that even the worst people are carrying on. Now, we have a responsibility to save this world. We have a responsibility to create a great, honorable life, which is not superficial, which is not just to show off. But inside it should develop so that this light of your spirit spreads and enlightens this world. It's very important to understand all these troubles and these, I should say, diseases, psychosomatic diseases, and all other problems which are, in a collective way we can call, of the Kali Yuga like political, economic, all these problems - only are created by human beings. They are not created by the Divine Force. But Divine Force tries to neutralize them if there are many Sahaja Yogis who are practicing Sahaja Yoga in the real sense of the word. If that could be done, if that could be achieved, then I think we can do a lot, a lot for the betterment of humanity, and that's why we have got realization. It's not only for yourself, it's not only for your family, it's not only for your city or country, but for the whole world Sahaja Yoga is going to work out. Now, if you have to do competition, you must only do competition in your ascent and in nothing else. But people are so superficial that they think by showing off or by becoming something – a big Johnny – they will achieve something of a very great level: is not so. It has to be a very humble attitude towards yourself also, so that you understand that whatever you are doing is for the betterment of global problems. Absolutely we can solve because you are the channels of the Divine. If I could do it 8. 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page8.txt Original Transcript : English alone, I would have done it. But I can't, so that's why I had to gather you all and to tell you that you become all the channels. But in the meanwhile, you enjoy. You enjoy life. Every second becomes a joy, which is also the gift of Shiva. Shiva is the one who creates this great admiration and great appreciation of every moment, everything that is there. And that is the state we have to achieve, by not condemning yourself, or not by pampering your ego, but by seeing what you are. That's the main thing one has to see - what problem you have, and what is troubling you is yourself only. If you could just come to that point of understanding, I am sure, I am very, very sure that you will be such an asset to help to make this world look at itself and change. Because superficially you cannot change such deep rooted problems. And, you are being so blessed by Kundalini that you can really become a great torch, I should say, torch on the path oftruth, love and joy. May God bless you. 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page9.txt ENGLISH TRANSLATION (Hindi Talk) Scanned from English Divine Cool Breeze Shiva is the reflection of Sadashiva. Shiva's form is in our heart all the time in the form of our spirit. It resides there. I would not say it is enlightened. When the Kundalini is awakened, then this Shiva gets awakened and this gets awakened in our nerves. Chaitanya is said to be "Medha Sthiti', First our heart and our brain get connected. Otherwise, ordinarily a person's brain goes one way and the mind runs the other way. When this union takes place, the light that is there within us, which comes from our spirit, flows in the form of Chaitanya from our heads and our fontanel bone area.What we have to understand further is that when this light comes within us, then gradually we see that our life changes. Our anger and other vices, start vanishing. Gradually all these things drop off and devotion is established within us. In devotion, a sense of detachment awakens. Nothing is important any more. The form of Shiva is highly evolved. He is not bothered about anything. His hair is dishevelled, he is not bothered about the type of clothes he is wearing, what he should do. All this work he has given to Vishnu. He is himself detached from all this, His vehicle is Nandi who cannot in any way be tamed. Wherever it takes, Shiva goes there. Shiva is never bothered about what people might say, because he is contained within Himself. When he came for his wedding Shri Vishnu saw him and thought, "How could he be bridegroom for my sister?" But Parvati knew that it was only he who was worthy of her. He was a happy-go-lucky type of person. He was not bothered about anything. When one rises above everything, then for Him everything is alike. His attention never goes there. This form of Shiva that we see, we find very endearing. When the Shiva tattwa gets awakened in Sahaja Yogis, their life also starts changing. When people come to Sahaja Yoga, both men and women, are very fond of dressing up. All the attention is on what they should wear. There are many beauty clinics and things and women are very caught all these things cease to be important and one looks only for the comfort of the spirit. One stays from bodily comforts. See these foreign Sahaja Yogis, they live in big houses, they have in all this. But when, by getting enlightened, you become beautiful from within, then up away cars and everything, but when they come here, they are contented within themselves. It's not so with Indians. Indians now also, wherever they travel, they need attached bathrooms and all sorts of things. Still, they are not able to rise above all this. I am surprised to find that in a poor country like India people still have so many desires left. These people said, 'Mother, take a big 10 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page10.txt English Translation (Hindi Talk) place for an ashram.' Our Indians never live in an ashram. When we made this ashram, with such hard work and a lot of expenditure, nobody was prepared to live in it. We said we will pay you a salary to live in it, still they were not prepared. For My birthplace, Chhindwara, we spent so much money and I said that retired Sahaja Yogis should stay there, the climate is very nice, it's a hill station. But nobody is prepared to go. Everybody is bothered about their comfort. My house, my place, my wife, my food should be cooked in this manner. They will eat only special kind of food. We Indians are so conditioned up by our tastes; with the foreigners it is not so. By meditation until we overcome all this, we cannot ascend. In the matters of sacrifice, we lag behind. For the purchase of land, for NGO project, Sahaja Yogis were asked to pay a little more puja money. But there was a lot of hue and cry, complaints and al that. I have been doing everything without taking any money from you. How does it matter it you give a little more money for a noble cause? I have seen many sacrificing people in My lifetime, but, nowadays, this spirit couldn't be seen. I don't see it nowadays. I know about My mother, if she had even one saree more than six, she would give it away. When, people come to Cabella, I am surprised, they want separate rooms, they do not want to stay with everyone. One who cannot be collective, cannot be a Sahaja Yogi. He still thinks, 'I am special, I must have some special arrangements'. He is a Sahaja Yogi in name only. One who worships Shiva, he should be like Shiva. You make him sleep anywhere, give him anything to eat, one who is not bound by time, is not bound by anything, only such a person is Sahaja Yogi. And you have Shivji's Pradurbhava' (manifestation) in you. But to attain this, God knows, what Tapasya people undergo and anywhere you go they will snatch all your money and what not. It is not so in Sahaja Yoga But this "Vriti' (tendency) that we have in ourselves, we should what all we can give up. Until you do not get this masti' (ecstacy) within you, you cannot be give up, We should try and see called a worshipper of Shiva. Mataji has all types of worshippers, there is nothing special about that. Whatever they do, a Mother is a Mother, Mother will forgive them. But by being forgiven, you cannot reach that state In forgiveness the most important thing is that one should always ask for Shiva's forgiveness because we are at each step doing things we should not be doing. So we should ask for forgiveness from Shiva Shambhu. We make this mistake and that mistake, we have this need and that need-- till we have these needs within us, we should keep asking forgiveness from God. This feeling of possessiveness-my house, my wife-until we can overcome this, we cannot be Shiva Bhaktas In this regard, it is very surprising that while foreigners who have never heard of Shiva's name have benefitted so much, we are still caught in small things and consider that so important. To be Shiva means that the hatred and negativities that are there within us, we should give them up But even after coming to Sahaja Yoga, people are unable to see themselves. I have heard there is 11 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page11.txt English Translation (Hindi Talk) a mother-in-law who is ill-treating her daughter-in-law. When I asked her why she is doing sc she said, 'I have never ill-treated anyone.' Really? They will go to the cinema and see a mother in-law ill-treating her daughter-in-law and start crying, but they will come home and do th same thing. Or, the daughter-in-law will ill-treat the mother-in-law and will say that I hav never ill-treated anyone'. Without being truthful within, you cannot ascend in Sahaja Yoga. Sahaja Yoga changes your life, you have become pure like gold, and gold cannot be tarnished have become that, reached that state. Why is it that you are still slaves of thes Now you innumerable things in this world? This is the speciality of Kundalini, that it cleanses yot completely. Now, service. Yes, you should do service too, but I really do not require any service from you. I am self contained. What are you going to do for Me? The only thing is that you should also be self contained and enjoy yourself. In that state of joy, you should think that al these things are meant for enjoyment and that by doing Sahaja Yoga when you are already in tha state of joy, then why do you need to do all this? After much brooding, I have come to the conclusion that Sahaja is very simple and that's why i is very difficult. If somebody is there standing with a stick and saying, 'alright now shave of your heads, wear saffron clothes', hunger strike for 14 days, then it will be alright. But accepting Sahaja with heart, mind and brain, one should condemn one's misdeeds and improve why do I do like that? Should have I done that? By doing this, you will be able to give up man oneself bad things and find that you are 'Samartha' (Capable). You have no needs, no desires, you arn sitting comfortably. And it is surprising that when the Chaitanya knows that you require nothing then it will serve you a platter full of everything. May be that it is to tempt you. There is no neec of yours that it cannot fulfil. Today we did so much 'Avahan' (invocation) of Shivji and he actually likes this sort of people The difference between Him and Me is that I like all sort of people. He only likes those kind o people who have given up all this. We have these conditionings for everything-we should wea type of clothes. If we don't, so what? But in Sahaja, Sanyas is not from the outside, but fron within. From within, you become a Sanyasi and then no desire remains. Wherever you are, you are joyful. First there were 'Nath Panthis', they used to wander all over and they taught peopl this a lot of things. I am surprised, how much these people travelled! When I went to Colombia found out that these people had even reached Bolivia, When you go to Colombia in an aeroplane you feel giddy, it is at such a height, and at that time people used to go on foot. So I don' understand how these people might have reached there. In Russia also and other countries they travelled. How they lived, how they travelled all over, what they wore, no-one knows! Because you reach that state where you become a miraculous person, like 'Shirdi Sainath'. He anywhere, helps anyone. People say, 'Mother, we saw him'. I say, Yes, it is possible'. Such people become immortal because the killing tendecies in them get finished and that make them mortal appear They become immortal. And to achieve this immortality is the real puja of Shivji. 12 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page12.txt HINDI TRANSLATION (English Talk) मैं इन लोगों से (भारतीय) श्री शिव की पूजा की बात कर रही थी। आपके साथ क्या घटित होना चाहिए? आज मैं आपको बताऊंगी कि जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो हमारे अन्दर क्या घटित होता है। यहाँ ग्यारह रुद्रों का स्थान है, वे श्री शिव की शक्तियों के अंश हैं और हमारे अन्दर जीवन के प्रति जो मिथ्या विचार हैं उन्हें निकाल फेंकने के लिए वे सब प्रयत्नशील रहते हैं। जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो वे सब जागृत हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बुद्ध और महावीर भी उन्हीं का एक हिस्सा हैं। वे सभी हमें बुराइयों में फँसने से रोकते हैं। मान लो हममें अहं है तो बुद्ध इसको नियंत्रित करेंगे और ये देखेंगे कि अपने अहं से आपको सदमा पहुँचे। इस सदमे के पश्चात् आप हैरान हो जाते हैं कि इतने अहंकारी, अपमानजनक और ओछे, आप किस प्रकार हो सकते हैं। परन्तु जब यह रुद्र जागृत नहीं होता, जब इसमें प्रकाश नहीं होता तब क्या होता है? तब आप अपने कार्यों को न्यायसंगत ठहराने लगते हैं। आप सोचते हैं कि जो भी कुछ आप करते हैं वह ठीक है। जो भी कुछ आपने किया, जो भी कुछ आपने कहा, जो भी आपने प्राप्त किया, आप सोचते हैं कि वह आपका अधिकार है तथा आपने कुछ गलत नहीं किया। इसके लिए रुद्र रूपी बुद्ध का जागृत होना आवश्यक है। इसके विपरीत यदि आप अहंकारी बनते चले जाएं तो आप पूर्णत: आक्रामक व्यक्तित्व बन जाएंगे। आप जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की क्या निशानियाँ हैं। मात्र देखें और अन्तर्दर्शन करें और स्वयं के लिए देखें कि अहं ने आपको क्या हानि पहुँचाई है । स्वयं के विषय में आपके कितने गलत विचार थे। इसी कारण मोहम्मद साहब ने कहा था कि जूतों से अपने अहं की पिटाई करो । अहं को रोकने की कोई और विधि उनकी समझ में नहीं आई । यह अहं वास्तव में आपके मस्तिष्क का विस्फोट कर सकता है और आप भिन्न कठिनाइयों में फँस सकते हैं। परिणाम स्वरूप मैंने देखा है कि लोग युप्पीज़ रोग ग्रस्त हो जाते हैं जिसमें चेतन मस्तिष्क बिल्कुल बेकार हो जाता है, व्यक्ति हिल भी नहीं सकता, चेतन अवस्था में वह हिल-डुल नहीं सकता परन्तु अचेतन स्थिति में वह हिल-डूल सकता है। यह रोग इतना भयंकर है कि व्यक्ति रेंगने वाले जीव की तरह से हो जाता है। ऐसे लोगों को कन्धे पर लाद के ले जाना पड़ता है, स्वयं तो वे चल भी नहीं सकते, बैठ भी नहीं पाते। बहुत ही छोटी उम्र में ऐसा हो सकता है। अमेरिका में ऐसा हुआ है और भारत में भी मैंने ऐसे कुछ रोगी देखे हैं। अत: यदि आप अपने अहं का ध्यान नहीं रखते, इसे नियन्त्रित नहीं करते इस पर आपको पश्चाताप नहीं होता (यद्यपि सहजयोग में पश्चाताप जैसी कोई चीज़ नहीं है क्योंकि हमें विश्वास है कि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है और आप गलतियों से परे हैं) तो आपको परेशानी हो सकती है। अपनी गलतियों पर हमें पश्चाताप होना चाहिए। अंग्रेजी में एक शब्द है (वततल) मुझे खेद है हर चीज़ के लिए खेद है, फोन उठाते हुए भी वे कहते हैं मुझे खेद है। हर चीज़ के लिए वे कहते हैं मुझे खेद है। काहे का खेद? परन्तु यह खेद भी अर्थहीन है इसमें कोई गहनता नहीं। मुझे खेद है कहते हुए आपको देखना चाहिए कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं और कौन सी त्रुटि का सुधार होना आवश्यक है। आज की पीढ़ी में बहुत बड़ी समस्या यह है कि उसमें भयानक अहं विकसित हो गया है क्योंकि हमारी सारी 13 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page13.txt Hindi Translation (English Talk) आर्थिक उन्नति ने, औद्योगिक विकास ने बड़ी- बड़ी संस्थाओं ने हमें एक मार्ग दिया है कि हम अपने अहं को विकसित करें। बताया गया है कि यदि हम अपने अहं को विकसित नहीं करते तो हम खो जाएंगे, कहीं के नहीं रहेंगे। इस प्रकार हम अहं को बढ़ावा देने लगते है तथा दाईं ओर की समस्याएं आरंभ हो जाती हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप में इसका प्रभाव बाईं ओर पर पड़ता है। वास्तव में बाईं ओर का स्थान हमारे सिर में दाईं तरफ है तो हमारा अहं बाईं आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर बाईं ओर के रुद्र हैं। अहंवश होकर लोग पापमय, अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरुद्ध हैं । श्री महावीर जी की शक्तियाँ नियंत्रण करती हैं, वे कहते हैं कि तुम नर्क में जाओगे, ऐसा | होगा। उन्होंने सभी प्रकार के नर्कों का वर्णन किया है तथा आपको डराने के लिए बताया है कि आप नर्क में जाओगे जहाँ आपको जिन्दा जलाया जाएगा, आदि-आदि। परन्तु इससे कोई लाभ नहीं होता और लोग बाईं ओर को, इस रुद्र की ओर, झुकने लगते हैं तथा ये रुद्र मजबूर हो जाता है और ऐसे व्यक्ति को भयंकर उदासीनता रोग हो जाता है। व्यक्ति भयंकर उदासीन हो जाता है। हे परमात्मा! मुझे यह कैसा रोग हो गया है? मैं इतना बीमार हूँ आदि, आदि। अपनी उदासीनता से आप अन्य लोगों को डराने लगते हैं, आप भावनात्मक भय-दोहन करने लगते हैं, अपना सिर पीटते हैं आदि, आदि। ऐसा अहं के कारण भी हो सकता है और बाईं ओर की स'स्याओं के कारण भी । ये दोनों रुद्र बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन दोनों का सम्बन्ध सीधे हमारी बायीं और दायीं अनुकम्पी प्रणाली से है। अत: यह आवश्यक है कि इनको ठीक करते हुए आप इन दोनों रुद्रों के शिकार न बन जाएं। इन रुद्रों का संतुष्ट होना आवश्यक है। अत: सामान्य होने के लिए इन दो रुद्रों का ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें से एक अहं का नियंत्रण करता है दूसरा आत्मग्लानि का। मैं ऐसा नहीं कर सकती। इस प्रकार के उदासीनता आदि रोगों का शरीर पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, इससे कैंसर तक हो सकता है। यदि ये रुद्र पकड़ जाएं तो व्यक्ति को कैंसर हो जाता है। आज्ञा में मेधा सूज जाती है। पूरा हिस्सा ही सूज जाता है। किसी कैंसर के रोगी को आप देखें तो उस पर सूजन दिखाई देगी, कम से कम मस्तक के बायीं या दायीं ओर। व्यक्ति के स्वभाव में इतना दोलन होता है कि कहा नहीं जा सकता कि कौन से रुद्र से आपने मनोदैहिक रोग ले लिए हैं। सभी प्रकार के मनोदैहिक रोग रुद्रों के प्रभावहीन हो जाने के कारण, उदासीन या निष्ठर स्वभाव के कारण भी होते हैं। यह बहुत से अन्य कारणों से भी हो सकते हैं। परन्तु यह सभी कारण श्री शिव या सदाशिव की शक्तियों के | अंग-प्रत्यंग ही होते हैं। श्री शिव करुणा से परिपूर्ण हैं, वे करुणा के सागर हैं। आप यदि उनसे क्षमा माँगें तो वे क्षमा कर देते हैं, चाहे जो भी अपराध आपने किया हो। परन्तु यदि आप सोचते हैं कि आपने जो भी किया अच्छा किया, आपने कभी किसी को परेशान नहीं किया, किसी को दुःख नहीं दिया तो ये सब जानते हैं। शिव सभी कुछ जानते हैं और अपनी जानकारी के कारण वे त्यागने लगते हैं, आपको आपके भाग्य पर छोड़ देते हैं। अत: आपकी अपनी इच्छा शक्ति तथा शिव के आशीर्वाद का बहुत बड़ा योगदान है। जब शिव आपको आशीर्वादित करते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति भी बहुत उच्च हो जाती है। परन्तु ये जानने के लिए कि आपको अत्यन्त उच्च स्तर का व्यक्ति होना है। आपमें पूर्ण इच्छा शक्ति होनी चाहिए वे बिल्कुल सांसारिक किस्म के नहीं है । मान लीजिए कि श्री शिव को किसी पार्टी आदि में जाने के लिए कहा जाए तो वे कैसे लगेंगे? वहाँ लोग उन पर हँसेंगे । मैं जब कुछ हिप्पियों से मिली और उनसे पूछा कि तुम इस प्रकार के बेतुके बाल क्यों रखे हुए हो? उन्होंने उत्तर दिया कि हम आदि मानव 14 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page14.txt Hindi Translation (English Talk) बनना चाहते हैं। मैंने कहा कि आपका मस्तिष्क तो आधुनिक है, आदि मानव की तरह बाल रखने का क्या लाभ है? तो धोखा, स्वयं को धोखा देने से कोई लाभ न होगा। सबसे अच्छी बात तो ये होगी कि स्वयं का सामना करें और समझें कि आप क्या गलतियाँ करते रहे हैं? यदि ऐसा हो जाए, और जितने भी सहजयोगी यहाँ बैठे हैं, मैं आपको बता दें, यदि आप स्वयं को सुधार लें और शिव सम बन जाएँ तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी समस्याएं, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। परन्तु आज कलियुग के कारण ऐसा वातावरण बन गया है कि अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग चले जा रहे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि विश्व की रक्षा करें, एक अत्यन्त सम्माननीय जीवन की सृष्टि करें जो दिखावा मात्र (सतही) न हो। यह अन्दर से इस प्रकार विकसित हो कि आपकी आत्मा का प्रकाश फैले और पूरे विश्व को प्रकाशित करे। यह समझना अत्यन्त आवश्यक है। ये सब कष्ट, रोग, मनोदैहिक रोग तथा अन्य सभी समस्याएं जैसे, राजनीतिक, आर्थिक तथा अन्य समस्याएं मानव की बनाई हुई हैं। सामूहिक रूप से ये कलियुग की देन है। परमेश्वरी शक्ति ने इन्हें नहीं बनाया। अत: यदि बहुत से सहजयोगी हों, जो सत्यनिष्ठापूर्वक सहजयोग कर रहे हों, तो यह परमेश्वरी शक्ति इन्हें निष्प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। यदि ऐसा हो जाए, यदि ये उपलब्धि हम पा सकें तो, मैं सोचती हूँ, हम बहुत | कुछ कर सकते हैं- मानव के हित के लिए बहुत कुछ। इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। ये केवल आपके लिए ही नहीं है, केवल आपके परिवार के लिए ही नहीं है, केवल आपके नगर या देश के लिए ही नहीं है परन्तु यह पूरे विश्व के लिए है। सहजयोग कार्यान्वित होगा। आपने यदि परस्पर मुकाबला करना है तो उत्थान में करें, और किसी चीज़ में नहीं। परन्तु लोग इतने उथले हैं कि वे सोचते हैं कि दिखावा करने से या अपने आपको बहुत बड़ी चीज़ मान बैठने से वे उत्थान का बहुत ऊँचा स्तर पर लेंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। स्वयं के प्रति भी अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण होना चाहिए ताकि आप समझ सकें कि आपके सभी कार्य ब्रह्माण्डीय समस्याओं के समाधान के लिए हैं। नि:सन्देह आप इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं क्योंकि आप ही परमात्मा के माध्यम हैं। यदि मैं अकेली ये सब कार्य कर सकती तो मैंने कर दिया होता, परन्तु मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ। इसीलिए मुझे आप सब लोगों को यह बताने के लिए इकट्ठा करना पड़ा कि आपको परमात्मा का माध्यम बनना होगा। परन्तु साथ ही साथ आप जीवन का आनन्द ले रहे हैं। आपका हर क्षण आनन्द बन जाता है। यह भी श्री शिव का ही वरदान है। शिव ही इस महान सराहना तथा हर क्षण की महान अनुभूति की सृष्टि करते हैं। यही स्थिति आपने प्राप्त करनी है, अपनी भत्त्सना द्वारा नहीं और न ही अपने अहं को बढ़ावा देकर, परन्तु ये देखते हुए कि आप क्या हैं। यही विशेष चीज़ है जिसे आपने देखना है, कि आपमें क्या बुराइयाँ है। आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट दे रहे हैं। इस बात को यदि आप समझ लें तो मुझे विश्वास है, पूर्ण विश्वास है कि आप इतनी बहुमूल्य चीज़ बन जाएंगे जो पूरे विश्व के लोगों को, स्वयं को देखने और परिवर्तित होने में सहायक होगी। समस्याओं की जड़ें इतनी गहन हैं कि उथले स्तर पर रहते हुए आप परिवर्तित नहीं हो सकते। माँ कुण्डलिनी आपको इस प्रकार आशीर्वादित कर रही हैं। मैं कहूँगी, कि आप सत्य, प्रेम और आनन्द के मार्ग पर, वास्तव में, एक महान मशाल (ज्योति) बन सकते हैं। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 15 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page15.txt MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari कसा काय?" पण पार्वतीला माहीत होते की तेच तिचा पति होण्यास लायक आहेत. ते सदा-सर्वकाळ खूष कसलीही पर्वा नाही. एकदा कोणी सर्व गोष्टींच्या पार गेला की त्याला सर्व गोष्टी सारख्याच वाटतात, त्यांच्याकडे त्याे चित्तव जात नाही. या स्वरूपामध्ये आपण शिवांना जेव्हा जाणतो तेव्हा ते लोभस वाटते. सहजयोग्यांमधे शिवतत्त्व जागृत झाल्यावर त्यांचे शिव हे सदाशिवांचे प्रतिबिंब आहेत. शिव आत्मस्वरूपांत आपल्या हृदयात सदैव प्रस्थापित आहेत; तिथे त्यांचा वास आहे. त्या स्थानी ते प्रकाशित आहेत असे मी म्हणणार नाही. कुण्डलिनीचे जेव्हा जागरण होते तेव्हा श्री शिव जागृत होतात आणि ते चैतन्य आपल्या नसांमधून वाहू लागते. चैतन्यालाच "मेधास्थिति" असे नाव आहे. सर्वप्रथम आपले हृदय व मेंदू जोडले जातात प्रवृत्तीचे आहेत. त्यांना किक्म सामान्यतः माणसाचा मेंदू आणि त्याचे मन विरुद्ध दिशेने कार्थ करत असतात. हा योग बटित झाल्यावर आपल्या जीवनही बदलते. सहजयोगात येणारें लोक, पुरुष व महिला, दोघेजण आधी कपड्यालत्यांच्या बाबतीत हौशी असतात. त्यांचे लक्ष सदैव पेहरावाकड़े, आज ब्यूटि- आल्याचा प्रकाश चैतन्यस्वरूपात आपल्या मस्तकामध्ये व टाळूमध्ये पसरु लागतो. त्यानंतर समजून घ्यायला हवे की हा प्रकाश आपल्याला मिळाल्यावर आपल्या जीवनात पा्लरकडे खूप स्त्रिया जातात. त्याशिवाय चालत नाही, पण परिवर्तन घडून आल्याचे आपण पाहतो. आपला राग आणि वाईट सवयी कमी व्हायला लागतात, हळुहळु हे दोष पूर्णपणे गळून जातात आणि आपल्यामध्ये श्रद्धा प्रस्थापित आणि आत्याच्या सुखाकडेच तुमचे लक्ष लागते. शारीरिक होते. त्यातूनच अनासक्तपणाची भावना जागृत गोष्टींचे महत्त्व वाटेनासे होते. शिवतत्त्व हे फार उन्नत झालेले रुप आहे. त्यांना कशाचीही पर्वा नसते. त्यांच्या केसांच्या जटा झालेल्या असतात. कपड्यांची त्यांना फ़िकीर नसते तसेच काय करावे भारतीयांचे असे नाही; कुठेही प्रवासाला गेले की अटॅ्ड- हे भान नसते हे सर्व काम त्यांनी विष्णूवर सोपवले आहे. आणि स्वतः त्यापासून पूर्णपणे अलिप्त झाले आहेत. त्यांचे वाहन नंदी आहे ज्यांना कुणीही माणसाळावत नाही. तो जिथे नेईल तिकडे शिव जातात. आपल्या स्वतःमध्ये ते अजून आहे. ते लोक म्हणतात "माताजी, आश्रमासाठी इतके पूर्णपणे स्थिरावले असल्याने लोक काय म्हणतील मोठी जागा घेऊ या." आपले भारतीय लोक आश्रमात याची ते पर्वा करत नाहीत. ते जेव्हा विवाह करण्यासाठी आले तेव्हा विष्णूंना वाटले "हा पुरुष माझ्या बहिणीचा पति आत्मप्रकाश मिळाल्यावर जेव्हा तुम्ही आतून सुंदर बनता तेव्हा या सर्व बरवरच्या गोष्टी फालतू वाीवला लागतात होते: इतर सुख तुम्ही उदासीन होता. आता है परदेशातील सहजयोगी पहा.तिकडे त्याची घरे फार मोठी आरामबद्दल असतात, गाडी वगैरे त्यांच्याजवळ असते. पण ते आपल्याकडे आले की असेल त्यात समाधानी असतात. ओ बाथरुमपासून त्यांना सर्वकाही पाहिजे असते, अजूनही ते या गोष्टींपासून वर आलेले नाहीत. मला आश्चर्य वाटते की भारतीसारख्या गरीब देशातील लोकांनाही भौतिक हाव रहायलाच तयार नसतात. आपण हा आश्रम खूप कष्ट करून व पैसे खर्च करून बाँधला पण इथे कुणाला रहायला 16 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page16.txt Marathi Translation (Hindi Talk) नाही. नको. आम्ही म्हटले की तुम्हाला खर्चाला सर्व पैसा पगार म्हणून देऊ तरी कुणी तयार नाही. आमच्या जन्मगावी. छिंदवाड्याला आम्ही खूप खर्च केला आणि वयस्कर निवृत्त काही विशेष नाही. तुम्ही काहीही केले तरी माताजी आई सहजयोग्यांना रहायला सांगितले, तिथली हवा छान आहे. म्हणून क्षमाच करणार. पण क्षमा केली गेल्यावरही ती स्थिति डोंगरावरचे स्थान आहे पण कुणीही जायला तयार नाही. तुम्हाला येत नाही. क्षमबद्दलची सर्वांत महत्त्वाची गोष्ट सगळ्यांना आपल्या आरामाची काळजी-माझं घर, माझी म्हणजे प्रत्येकाने शिवांकडे क्षमायाचना करायला हवी कारण जागा. माझे कुटुंब, माझे खाणं-पिणं- एवढच! जे करायला नको तीच चूक आपण पुन्हा पुन्हा करत खाण्यापिण्याच्या बाबतीतही फार चोखंदळ, सवयीमुळे भारतीय लोक फार कन्डिशन्ड असतात. परकीयांचे तसे नसते. ध्यानामधून आपण या सर्वापासून भागवण्याचा प्रयल करतो मुक्त झाल्याशिवाय आपली वाढ होत नाही. त्याग करण्याच्या बावतीत आपण मागे पडतो. एनु. ते हवे अशा गरजा- माझे घर, माझी पत्नी- जोपरयंत संपत जी. ओ. प्रकल्पासाठी जमीन खरेदी करण्यासाठी सहजयोग्यांना पूजा-वर्गणी वाढवायला सांगितले लगेच परदेशीय लोक ज्वांनी शिवांचे नावही कधी ऐकले नव्हते. त्यावर खूप प्रतिक्रिया, आरडाओरड झाली. तुमच्याकडून काहीही पैसे न मागता मी कार्य करत आले. पण एखाद्या माताजींच्या जवळ सर्व तहेचे भक्त आहेत, त्यात ा असतो. म्हणून आपण शिवांची (शिव-शंभू) क्षमा मागितली पाहिजे.. आपण चुका करते राहतो, आपल्या गरजा - आपल्या गरजा जोपर्यंत संपत नाहीत तोपर्यंत आपण शिवांकडे क्षमायचना करावी. हे हवे, आपल्या नाहीत तोपर्यंत आपण शिव-भक्त होत नाही. या बावतीत फार पुढे गेले आहेत. आपण अजून लहान-सहान गोप्टींनाच महत्त्व देत आहोत आणि त्यातच अडकून बसलो आहोत. चांगिल्या कार्यासाठी तुमच्याकडून पैसे मागितले तर काय शिवभक्त व्हायचे तर आपल्यामधील मत्सर आणि विधडले ? सर्व त्याग करणारे अनेक लोक मी आयुष्यभर निगेटिव्हिटी आपण दूर केल्या पाहिजेत. पण सहजयोगात पहात आले पण आजकाल ती भावनाच नाहीशी झाली येऊनसुद्धा लोक स्वतःकडे पाहू शकत नाहीत. एक महिला आहे. तस्े कुठे पहायलाच मिळत नाही. माझी आई, सहा साड्यांच्यावर एकही ठेवत नसे एक जरी जास्त आली तर तिला विचारले तर म्हणाली "मी कधींच कुणाला वाईट देऊन टाकणार. कबेलामधे जे लोक येतात त्यांना स्वतंत्र वागणूक दिली नाही." महणजे बघा. त्या सिनेमा बघतील खोली हवी असते, सगळ्यांच्या बरोबर रहायची इच्छाच नाही याचे मला आश्चर्य वाटले. जो सामूहिकतेत राहू शकत नाही तो सहजयोगी नाहीच. पण "मी मोठी विशेष व्यक्ति. माझी खास व्यवस्था हवी." असा माणूस नुसता नावाचा सहजयोगी. शिवाची पूजा करणार्यांनी शिवासारखे झाले सहजयोगात तुम्हाला गहनता येणार नाही. पाहिजे. त्याला कुठेही झोपायला जागा द्या, काहीही जेवायला द्या, जो काळाच्या पलीकडे गेला त्याला कसलीही बांधिलकी नाही. असा माणूसच खरा सहजयोगी. नाही. आता तुम्ही त्या स्थितीला आला आहात. मग तुम्ही तुमच्यामध्ये शिवांचा प्रादुर्भाव आला आहे. पण ही स्थिती गुलाम जगातील क्षुल्लक गोष्टींचे अजूनही कसे राहू मिळवण्यासाठी लोकांनी किर्ती तपस्या केली देव जाणे. आपल्या सुनेला अजूनही छळत असल्याचे मला समजले. मी आणि सुनेला सासुकडून छळ झाल्याचे पाहून रडायला लागतील पण घरी यऊन पुन्हा सारा तोच प्रकार सुरू! तीच गोष्ट सुनेची; ती पण म्हणणार "मी कधीच कुणाला त्रास दिला नाही." स्वतःशी आतमधून प्रामाणिक राहिल्याशिवाय सहजयोग तुमच्यामधे परिवर्तन घडवतो. तुम्ही आता सोन्यासारखे शुद्ध झाला आहात, सोन्याला कधी डाग पड़त शकता? हीच कुण्डलिनीची विशेषतः आहे, ती तुम्हाला पूर्णपणे स्वच्छ करते. आता सेवा कार्य, आता तुम्ही सेवा केली पाहिजे. मला तुमच्या सेवेची तर मुळीच जरुर नाही. मी स्वतःशी समाधानी आहे. मग माझ्याकरता तुम्ही काय इतरत्र कुठेही जा, तुमच्याजवळचे सारे पैसे लुबाडतील काय काय तन्हा करतील, पण सहजयोगात तसं नाही. पण ही आपली प्रवृत्ति जायला हवीं. आपण काय काय त्याग करू शकतो हेच पहात चला. ही 'मस्ति' जोपर्यंत तुम्हाला जाणवत नाही तोपर्यंत तुम्ही शिवांचे पूजारी गणले जाणार करणार ? एवढंच करा की तुम्ही पण ते समाधान मिळवा आणि त्याचा आनंद उपभोगा त्या आनन्दाच्या स्थितीमधे 17 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page17.txt Marathi Translation (Hindi Talk) काय केले असतील कुणाला ठाऊक! कारण ही स्थिति मिळाल्यावर तुम्ही सिद्ध - पुरुष बनता जसे शिरडचे तुम्हाला कळेल की या सर्व गोष्टी तुम्हाला आनंद देण्यासाठीच आहेत. सहजयोगात आल्यावर ती स्थिति प्राप्त केल्यानंतर इतर गोष्टींची तुम्हाला गरज कशाला वाटेल? साईनाथ; ते कुठेही प्रकट व्हायचे, प्रत्येकाला अडचणीत खूप विचार केल्यावर माझे मत आता असे झाले मदत करायचे. काही लोक सांगतात "माताजी, आम्ही आहे. सहजयीग अगदी सोपा आहे आणि म्हणूनच फार अवघड आहे. नाही तर दुणी तरी काठी उगारून तुमच्या असे संत-लोक अमर असतात. आणि ती अमर-अवस्था मागे लागून "आता डोक्यावरचे केस काढा, भगवी वस्त्े नेसा, चीदा दिवस खाणेपिणे नाही" असे म्हणू लागला तर ठीक होणार ! पण हृदयापासून, मनापासून व बुद्धि वापरून सहजयोग पत्करल्यावर आपले दोष व चुका सुधारून स्वतःला सुधारले पाहिजे. मी असं का केले. असं करायलाच हवे होते का असा सतत विचार करत करत पुष्कळ वाईट ते शिवांच्या शक्तीचे अंश असतात आणि ते सर्व गोष्टी तुम्ही टाकून द्याल आणि आपण 'समर्थ' असल्याचे तुम्हालाच कळेल. तुम्हाला कशाची गरज नाही; कशाची इच्छा नाही आणि आरामात बसला आहात आणि तुम्हाला हे यापैकीच आहेत. कुण्डलिनीच्या उत्थानानंतर ते रुद्र काहीच नको असल्याचे कळल्यावर हे परमचैतन्य तुमच्यासमोर भरभरुन ताट ठेवेल. कदाचित तुम्हाला मोहात प्रभावातून बाहेर खेचत राहतात. उदा. आपल्यामधे अहंकार पाडण्यासाठीसुद्धा तसे होईल. तुम्हाला गरज वाटेल आणि ती त्याच्याकडून पुरी होणार नाही असे होणारच नाही. आज आपण शिवांना खूप आवाहन केले आणि त्यांना असेच लोक आवडतात. माझ्या आणि त्यांच्यामधे फरक त्यामुळे अपमानित व क्षुद्र वाटून घेतो. पण जेव्हा हा रुद्र असा आहे की मला सगळ्या प्रकारचे लोक आवडतात तर शिवांना ज्यांनी आपले दोष, सववी, संस्कार सर्वांचा त्याग केला आहे असेच लोक आवडतात. आपल्या कण्डिशन्स अनेक आहेत. उदा. आपल्याला अमक्याच तहेचे कपडे त्यांना पाहिले" आणि मी म्हणारयचे "असे होऊ शकते. रे मिळवणे हीच शिवांची खरी पूजा. पुढील भाषण इंग्रजीतून झाले. आज मी तुम्हाला सहजयोगानंतर आपली आतली स्थिती काय बनते त्याबद्दल सांगणार आहे. तुम्हाला आत्मसाक्षात्कार मिळतो तेव्हा एकादश-रुद्र आलेले असतात. आपल्यामधे जीवनाबद्दलच्या ठाण मांडून बसलेल्या चुकीच्या कल्पना काढून टाकण्याचे प्रवलन करतात. वुद्ध व महावीर जागृत होतात. ते सर्व जण आपल्याला नको त्या गोष्टींच्या असतो त्याच्याकडे बुद्ध लक्ष ठेवतात. ते असं काम करतात का आपणच आपला अहंकार जाणून भयचकित होती; है समजल्यावर आपल्याला आश्चर्याचा धव्का बसतो आणि जागृत नसतो, जेव्हा त्याच्यामध्ये प्रकाश आलेला नसतो तेव्हा काय होते ? तर तुम्ही स्वतःचेच समर्थन करू लागता- आपण जे काय करतो. केले आहे, बोलून दाखवले आहे किंवा मिळवले आहे ते सर्व लागतो, आपले काहीच चुकले नाही असे समजतो. म्हणून या बुद्ध रुद्राचे जागरण व्हावे लागते. याच्या उलट तुम्ही अहंकारालाच गोंजारत राहिलात. अहंकारीपणा गाजवू लागलात की तुम्ही पूर्णपणे उजव्या वरोबरच आहे असं समजू हवे. ते नाही तर काय झाले ? पण सहज़योगामधे 'संन्यास" वाह्यातून नसतो तर आपल्या आतमधून असतो. आतून संन्यस्त' झाल्यावर तुमच्या इच्छाच संपतात. कुठेही असलात तरी आनंदी असता. पूर्वी 'नाथ-पंथी' होते आणि ते दूर-दूरवर हिंडून लोकांना उपदेश देत असत. ते कुठे-कुठे बाजूची व्यक्ति बनता आणि एकदा तसे झाले की तुमचे गेले याचे मला आश्चर्य वाटायचे. मी कोलंबियाला गेले होते व्यक्तिमत्व कसे होते हैे तुम्ही जाणताच अशा वेळी तुम्ही तिथे मला समजले की नाथपंथी बोलिव्हियालाही गेले होते शांतपणे स्वतःला बघून आत्मपरीक्षण केले आणि अहंकाराने कोलंबियाचा विमान प्रवास करताना तिथे विमान इतक्या उँचीवरून जाते की चक्कर यायला लागते आणि त्याकाळी चुकीच्या कल्पना आपल्या डीक्यात भरवल्या आहेत है लोक पायी तिथे गेले ! ते तिथे कसे पोचले असतील नला कळत नाही. ते रशिया आणि इतर देशांमधेही गेले होतेः त्यांनी एवढा प्रवास कसा केला असेल, त्यांनी कपड़े आपले काय नुकसान केले आहे, स्वतःबद्दलच्या काय काय जाणून घ्या. त्यासाठीच मोहम्मदसाहेबांनी सांगितले की स्वतःवरच जोडेपट्टी करा. आणखी दुसरे ते काय सांगणार? कारण हा अहंकार तुमच्या डोक्यामधे स्फोट घड़वून काय - 18 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page18.txt Marathi Translation (Hindi Talk) घाबरवण्यासाठी काय काय वर्णने करतील मलाच सांगता येणार नाही. पण त्याचाही काही उपयोग होत नाही आणि काय समस्या समोर आणील याचा भरवसा नसती आणि शेवटी त्या माणसाला असा विचित्र रोग(Yuppies) कोतो ज्या मुळे तुमचे मन आणीव अजिबात काम करेनासे लोक जास्तच डावीकडे झुकायला लागतात आणि या रुद्राजवळ जातात. हे रुद्रही जेव्हा काही करु शकत ा। होऊन निकामी बनते. जाणतेपणाने माणूस हालचाल करू शकत नाही, अजाणता हालचाल होईल पण जाणीवपूर्वक नाहीत तेव्हा मात्र प्रचंड नैराश्य येते. अरे देवा, कारय है नैराश्य, मला काहीतरी झालंगू असं म्हणूं लागतात. दुसन्यांना घाबरावून टाकता आणि लागते कारण स्यांना चालणे शक्य नसते, स्वतःहून ते चालू त्यांच्या भावनिकतेला बदनाम करता; वेडेवाकडे चाळे करुं लागता आणि स्वतःचेच डोके बडवायला लागता. हे नाही होणार, हा रोग इतका भवानक आहे की माणूस त्यातूनच तुम्ही सरपटणार्या प्राण्यासारखा होतो. त्यांना अंगावर घेऊन जावे शकत नाही किंवा खाली बसू शकत नाही, हा रोग तरुण वयातही होऊ शकतो. अहंकारातून किंवा डावीकडच्या समस्यांमुळे होते. हे दोन्ही रुद्र आपल्या डाव्या व उजव्या सिंपथेटिक पूर्णपणे संबंधित असल्यामुळे फार महत्वाचे आहेत. म्हणून तुम्ही या रुद्रांच्या तावडीत पडणार नाही याबद्दल सतर्क राहिले पाहिजे; त्यांना प्रसन्न ठेवणे म्हणून स्वतःच्या अहंकाराकडे लक्ष ठेवा, त्यावर नियंत्रण ठेवा आणि त्या दोपाबद्दल क्षमाशील व्हा. महजयोगामधे आपल्याला पश्चात्ताप वाटत नाही हा प्रकार नव्हसनसस्टिम बरोबर नाही कारण आपला विश्वास असती की आपल्याला आत्मसाक्षात्कार झाला आहे आणि आपण चुकीच्या जरुरीचे आहे. म्हणून अहंकार आणि स्वतःचीच कीव करण्याची भावना यांच्यावर नियंत्रण करणाऱ्या या दोन्ही गोष्टींपासून दूर आहोत. पण हे खरं नाही. आपल्याला पश्चाताप झाला पाहिजे. आता इंग्रजी भाषेमधे "सॉरी" हा रुद्रांना तुम्ही सांभाळले पाहिजे म्हणजे तुम्हाला त्रास होणार प्रकार आहे, प्रत्येक गोष्टीबद्दल 'सॉरी' टेलिफोन नाही: तसेच 'मला हे जमणार नाही, ते नको' इ. तक्र री उचलल्यावरसुद्धा ते म्हणणार "सॉरी, मी म्हणते सारी व नैराश्य दूर होतील. कारण त्याच्यांमुळे पुढे फार गंभीर प्रश्न, कॅन्सरसारखे आजार होण्याची शक्यता असते. रुद्र ा कशाबद्दल ? हा नुसता पीकळ शब्द आहे. त्याला अर्थ नाही आणि त्यात खोली (प्रामाणिकपणाची) पण नाही. तुम्ही सॉरी म्हणता तेव्हा काय चूक झाली म्हणून ते म्हणता आणि ती पकडले गेले तर दोन्ही बाजूंना सूज येते. त्याला 'मेधा म्हणतात, कॅन्सरचा माणूस पाहिलात तर त्याला सगळीकडे ा कशी सुधारणार इकडे बघा. आजकालच्या आधुनिक सूज आल्याचे दिसतें; कपाळाच्या डाव्या किंवा उजव्या पिढीमध्ये हा मोठा प्रश्नच आहे कारण आपल्याकडील बाजूकडे तरी सूज आढळते रुद्रांचा हा त्रास डावीकडून आर्थिक भरभराटीमुळे, औद्योगिक प्रगतीमुळे, मोठमोठ्या उजवीकडे किंवा उजवीकडून डावीकडे इतक्या नकळत झुकतो आणि त्या व्यक्तीच्या स्वभावात न समजण्यासारखे बदल फटकनन दिसतात की कुठल्या रुद्राचा त्रास आहे हे सहजासहजी लक्षात येत नाही. मनोविकाराचे सर्व आजार हे दोन रुद्र काम करेनासे झाल्यामुळे होतात. सतत नैराश्य किंवा आक्र मकपणा या दोन्ही प्रवृत्तीमुळे असे त्रास होतात असू शकतात पण ते सर्व सदाशिवांच्या शक्तीचेच भाग असतात. त्यांचा स्वभाव करुणेने ओतप्रोत भरलेला आहे. करुणेचे ते सागरच आहेत संस्थांमुळे आपला अहंकार वाढायला उत्तजनच मिळत आहे. तसं नाही केले तर आपला तरणापाय नाही. आपल्याला कुटेच किंमत राहणार नाही.म्हणूनच आपण अहंकाराचा वडेजाव मानती आणि हे उजव्या बाजूचे प्रश्न चालू होतात. प्रतिक्रिया म्हणून मस्तकाच्या डाव्या बाजूवर त्याचा दबाब त्याची आणखी काही कारणेही वेतो. उजव्या बाजूला अहंकार बळावती. डावीकडचे रुद्र महावीर आहेत. म्हणून लोक चुकीच्या, अनैतिक गोष्टी करू लागतात जे श्री गणेशांच्या विरोधात असते. महावीरांजवळ नियंत्रण करणार्या शक्ति असतात. ते त्यांना नुसती क्षमा मागितली की लगेच क्षमा करतात. पण तुम्हाला नरकात जायला सांगतील. आणखी काहीतरी तुम्हाला जर असं वाटत असेल की तुम्ही जे काही करता ते होईल, अनेक नरकयातनांचे वर्णन करतील, तुम्ही नरकात जाणार व जिवंत गाडले जाणार, असे तुम्हाला कधीच योग्यच आहे. तुम्ही कधीच कुणाचा छळ केला नाहीत. कुणाला दुःख दिल नाही तर मात्र त्यांना सर्व काही 19 19970316_Mahashivaratri Puja_Delhi.pdf-page19.txt Marathi Translation (Hindi Talk) आधीच समजलेले असते. आणि ते जाणतात म्हणून ते साध्य करु शकलो तर मला वाटते खूप मोठे कार्य होईल: सर्व मानवजातीच्या कल्याणाचे होईल आणि त्याचसाठी त्याची त्याग करु पाहतात. त्या स्थितीत येण्याची तुमची प्रबळ इच्छा व शिवाचे आशीर्वाद एकमेकांना पूरक असतात. शिवाचे आशीर्वाद आपल्याला आत्मसाक्षात्कार मिळाला आहे. तुमच्या स्वतःकरतां, तुमच्या कुटुंबाकरता, शहरापुरता किंवा मिळाले की तुमची इच्छा अधिकाधिक प्रखर होत जाते. पण देशापुरता नव्हे तर सर्व जगासाठी सहजयीग हे घहवून आपले व्यक्तिमत्व एका अत्युच्य स्तरावर नेणे आपल्या हिताचे आहे हे जाणण्यासाठी तुमची इच्छाशक्ति पूर्णावस्थेला यायला हवी. ते स्वतः फालतू सामान्य आणणार आहे. तुमच्यामधें स्पर्धा असेल तर ती दुसर्या कशासाठी नसून आपल्या उन्नतीसाठी स्पर्धा हवी. पण लांक इतके माणसासारखे नाहीत. समजा शिवांना तुम्ही एखाद्या पार्टीला उथळ आहेत की त्यांना वाटते की वरवरचा देखावा करुन जाऊ असे म्हटले तर ते कसे दिसतील ? तिथले लोक किंवा आपण कोणी विशेष आहात असे दाखून आपण कही विशेष असे मिळवू शकूं. तुम्ही अशी नम्रता मिळवली मला काही हिप्पी लोक भेटले तेव्हा मी त्यांना पाहिजे स्वतःही इतके नम्र बनले पाहिजे की तुम्ही जे कांही "तुम्ही तुमचे केस असे का ठेवता?" तर ते कराल ते सर्व जगाच्या कल्याणासाठी आहे हे तुम्हालाच आम्हाला आदिवासी बनायचे आहे." मग मी समजेल. आणि हे घटित होणारच आहे कारण त्यासाठीच तुमचा मैंदू आता प्रगत झाला आहे तर मग तुम्ही या परमचैतन्याचे वाहक बनले आहांत, मी जर एकटी हें करुं शकत असते तर मी केले असते पण तसे ते होणार स्यांच्याकडे पाहून हसणारच. म्हणाले ाि म्हणाले आदिवासींसारखे केस ठेऊन काय उपयोग होणार आहे?" म्हणजे स्वतःची अशी फसवणूक करण्यात काही अर्थ नाही. सर्वांत चांगले म्हणजे आत्मपरीक्षण करुन स्वतःचे काय चुकत आहे हे जाणावे. असे जर धडून आले, इथे बसलेल्या सर्व सहजयोग्यांनी तसे करुन स्वतःला सुधारले तर राजकीय, आर्थिक आणि इतर सर्व प्रश्न सुटतील अशी माझी खात्री आहे. पण आजकाल या कलियुगामुळे असा नाही. म्हणूनच मी तुम्हाला एकत्र आणून सांगत असते की तुम्ही लोकच परमशक्तीचे वाहक बनायला हवे. पण तसे होतांनाही तुम्ही आनन्द मिळवीत आहांत,जीवनांतील प्रत्यंक क्षण आनन्दाचा होत आहे आणि ही शिवांचीच कृपा आहे. जे कांही घडत आहे,क्षणाक्षणाला जे महान कौतुकास्पद व वाखाणण्यासारखें होत आहे ते सर्व शिवांकडूनच होते आहे. आणि स्वतःचा घिक्कार न करता किंवा अहंकागचा बडेजाव न करता स्वतःला नीटपणे ओळखण्याची स्थिति तुम्हाला मिळवायची आहे. हीच फक्त महत्वाची गोष्ट आहे. प्रकार झाला आहे की अगदी खराब लोकांचीही चलती आहे. जगाला वाचवण्याची जबावदारी आपल्यावर आहे. जवाबदारी अशी की आपल्याला एक महान आदरणीय तुम्हाला आता व्यक्ति बनायचे ज्यामधे वरबरच्या गोष्टी, नसता ं काय करमी आहे? तुम्हाला कीाय प्रश्न- अडचणी आहेत ? अडचण हीच आहे की तुम्हीच दिखाऊपणा याला थारा नाही तर आतून अशी उन्नतावस्था तुमच्यामधे अडचणी निर्माण करत आहांत. तुम्ही जर हैं जाणण्याची खरी क्षमता मिळवू शकाले तर तुम्ही साया जगाला तोच आदर्श दाखवू शकाल आणि जगामथें परिवर्तन घडवून आणाल अशी मला खात्री आहे. एरवी है खोलवर रुजलेले प्रश्न वरवरच्या उपयांनी सुटणार नाहीत. कुण्डलिनी तुमच्यावर प्रसन्न झाली आहे आणि तुम्ही दीपस्तंभासारखा सत्याचा, प्रेमाचा आणि आनंदाचा प्रकाश सर्वांना देऊ मिळवायची की आपल्या आत्यांचा प्रकाश आजूबाजूला पसरेल आणि या जगाला प्रकाशित करेल. हे समजून घेणे फार महत्वाचे आहे. आपले सर्व प्रश्न मनोविकाराचे आजार, एवढेच नव्हे पण या कलियुगातील मानवाच्या सामूहिक जीवनामधील राजकीय व आर्थिक प्रश्न ही सारी परिस्थिती माणसांनीच बनवली आहे. ते काही देवाने निर्माण केले नाहीत; उलट परमेश्वरी शक्ति या सर्वांचे परिणाम सुसह्य करण्याच्या प्रयत्नांत असते. सहजयोग खर्या अर्थाने जगणारे पुष्कळ सहजयोगी जर तयार झाले, असे आपण शकाले. परमेश्वराचे तुम्हांला अनंत आशीर्वाड. ০ ০ 20